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________________ ५२६ सिरिअणंतजिणचरियं उल्लसिय मयणसरगणअस्सत्था कमलविसरकयवासा ।। उव्वेय जुत्तचित्ता विरहिणि रमणिव्व जा सहइ ॥ ६७४७ ॥ तं मज्झे गच्छंतो पेच्छइ पालिट्ठमालिआवरियं । धूलिप्पायारोवरिमरगयसालंबकमलसरं ॥ ६७४८ ॥ जलनरकुलीरमयरअच्छं जत्थुच्छलंति अणुवेलं । आगच्छंतनरेसरसुयबलअवलोयणत्थं च ॥ ६७४९ ॥ चालियकमलवणरया कल्लोलुच्छलियजलकणप्पवहा । । मंदानिला कुमारं सेविउमिव पेसिया जेण ॥ ६७५० ॥ जं हंस-कुरर-सारस-सरेहिं मग्गस्समावणयणत्थं । वाहरइ व्व कुमारं जलकीलाकरणवित्तीए ॥ ६७५१ ॥ महुलालसभमिरब्भमरकमलदललोयणेहिं सकडक्खे । निक्खिवइ व कमलसिरी जम्मि कुमारं पई काउं ॥ ६७५२ ॥ (कुलयं) तं रिउपुरं व परिवेढिणमावासिओ नरिंदसुओ । दंडाहिनाह-मंडलिय-मंति-सामंतसंजुत्तो ॥ ६७५३ ॥ गुरुगुड्डरचउखंडयपडमंडवगुणिणिया विमाणेसु । आवासिओ समग्गो वि कडयलोगो जहाजोगं ॥ ६७५४ ॥ अग्गलिया मत्तगया सल्लइ-वड-कडह-कुडयसाहीसु । वल्लीसु विरइयाओ तुरियाणं आवलीओ य ॥ ६७५५ ॥ चरणत्थं परिमुक्का वसहा करहा खरा य महिसा य । दुव्वासु अरिद्धेसुं वि सुक्कपत्तेसु जवसेसु ॥ ६७५६ ॥ काऊण भोयणं सरनिरिक्खणुच्छलियकोउउक्करिसा । आरुहिय सारपत्तो गुरुवेगुत्तुंगहयरयणं ॥ ६७५७ ॥ तुरयाणीयट्ठिय मंडलीय-सामंत-मंतिसुंजुत्तो । अणुगम्मतो साउहपक्कलपाइक्कचक्केण ॥ ६७५८ ॥ कुमरो पालिपरिट्ठिय कुसुमियवणसेणिनिद्धछायासु । संचरमाणो सरसोहमिक्खए थिमियदिट्ठीए ॥ ६७५९ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001445
Book TitleAnanthnath Jina Chariyam
Original Sutra AuthorNemichandrasuri
AuthorJitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1998
Total Pages778
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, N000, & N001
File Size10 MB
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