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________________ १८९ रणविक्कमकहा परिवेढिज्जंति अत्तणो तणुं तेहिं पेच्छिउमभीओ । तेणेव ताई ताडयं मडएण लउडेणं च ॥ २३९६ ॥ तग्घाया हणण पडंत मडयकरजलिरकट्ठखंडेहिं । निवडइ भूयाइण सिवगुयगंगारवुठ्ठि व्व ॥ २३९७ ॥ उच्चाडणमंतस्स व तक्कयमडयप्पहारनियरस्स । भीयाई व पणट्ठाई सव्वओ भूयविंदाइं ॥ २३९८ ॥ तम्मडयघायसंजायभूरिखंडेहिं नरकरकेहिं । सहइ चियादद्धमही सरयन्भेहिं व नववीही ॥ २३९९ ॥ तेणाऽऽहयाई निवडंति महियले नरकरोडिखंडाई । जूययरपाडीयाओ वराडियाओ कडि त्ति व्व ॥ २४०० ॥ इय मडयकरंककोडिभूयविंदे विणट्ठनट्ठम्मि । रुद्रुण दड त्ति नियं निहियं मडयं महीवढे ॥ २४०१ ॥ दाऊण तस्स हियए पायं धरिऊण चारुचिहुरचयं । गहिऊण असिं छिंदइ जा सो रोसेण सिरकमलं ॥ २४०२ ॥ ता तेणुत्तं मा मा हणसु मं जोइणिं नियट्ठाणे । कोलंति अच्चब्भुय सत्तपरिरक्खियसरीरा || २४०३ ॥ के के न इह नरिंदा रणरंगम्मि व मसाणमझमि । भुत्ता हणिऊणं जोइणिहिं भाए विभइऊण ॥ २४०४ ॥ ता गिण्हसु मह दंडे पिसंडिमणिमोत्तियाभरणनियरं । जइ चुक्केमि अहं तुह ता मह हरिहीरविहिवाया ॥ २४०५ ॥ इय जंपिरम्मि मडए झड त्ति गयणंगणाओ तप्पुरओ । पडियं रयणाभरणं दिप्पंतं विज्जुफुरियं व ॥ २४०६ ॥ तो मडयं मोत्तूणं रयणाभरणं धरेइ नियपासे । दूरम्मि ठवइ को वा तारिसकट्ठज्जियं लच्छि ॥ २४०७ ॥ एत्थंतरंमि घडिया, घडंमि दोवहरसूयगं भेरिं । आयन्निय उट्ठाविय रिउविक्कममप्पणा सुत्तो ॥ २४०८ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001445
Book TitleAnanthnath Jina Chariyam
Original Sutra AuthorNemichandrasuri
AuthorJitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1998
Total Pages778
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, N000, & N001
File Size10 MB
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