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सिरिअणंतजिणचरियं तं न कुगंति अजोग्गा जीवा अम्हारिसा पमायपरा । जेण न हुंति ठाणं, पुणरवि एवं कलंकाणं ॥ ४९१६ ॥ आबालकालतोडियनिठुरघरवासपासदढबंधा । नंदंतु ते चिरं जे, जइणो न कलंकिया हमवि ॥ ४९१७ ॥ पुब्विल्लपुन्नकलिया, के वि हु नंदंति अनयवन्नो वि । सुनया वि अयसमन्ने, अहं व पावंति पावेण ॥ ४९१८ ।। एगदिसाए गच्छइ इय चिंतंती विसायविवसा सा । थोवदिणेहिं पत्ता, अइभीम-महाडई मज्झं ॥ ४९१९ ॥ जं पडिकूलानिलचलतरुदलहत्थेहिं वारइ व्व तयं । मा इह एहिं जमसुहं होही तुह भूरितरगं ति ॥ ४९२० ॥ सूयर-संबर-सद्ल-सीह-सरहस्सरेहिं सव्वत्तो । जं भयमिव उप्पायइ, भावियवायं कहेउं से ॥ ४९२१ ॥ तम्मि पियाल-ताली-तमालतल-माल-सज्ज-संजुत्ते । उंबर-अंबंबिलियाकलिए पविसइ भयुमंता ॥ ४९२२ ॥ तयणु मल्लसमुल्लसिरसत्तसत्ताण संकुले जंती । नियइ गुरुसिंगअग्गुल्लिहियनहं तं गिरिं एगं ॥ ४९२३ जो रत्तासोयडुमसमूहपच्छाइओ विरलकयली ।। गुरुपउमरायपुंजो व्व सोहए नीलमणिसबलो ॥ ४९२४ ॥ दलु तं सेलं सा चिंतइ, चिट्ठामि इह समारुहिडं । सीहाइ-सावयाणं मज्झा जमहं पुरो जंती ॥ ४९२५ ॥ इय परिभाविय सेलम्मि तम्मि सा मंद-मंदमारूढा । एगम्मि गुहागेहे, परिट्ठिया सीह-वहूय व्व ॥ ४९२६ ॥ नियवित्तिं निव्वत्तइ, तरु-कंद-फलेहिं तावसि व्व सिया । सुयइ य दब्मविणिम्मविय सत्थरे साहु-मुत्ति व्व ॥ ४९२७ ॥ तत्थ ठिया वि चिंतइ, जे पुव्वभवे मए कयं पावं । तस्स कुसुमं कलंको नरयनिवाया फलं होही ॥ ४९२८ ॥
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