SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 539
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५१० सिरिअणंतजिणचरियं जो सव्वणओ सुकुलब्भवो व सुंदरमहो व (सुहयरो) । पवणे व्व चंचलजुओ वरिसो विव जाय बहुमासो ॥ ६५४० ॥ रोगि व्व कलमलसिओ रोहणसिहरि व्व मणिवयाहारो | दंडो व्व सुवीहीओ सुरालओ उड्ढलोओ व्व ॥ ६५४१ ॥ (जुयल) हिरि वसइ तम्मि आबालकालपरघरकुकम्मनित्थारो । नामेण दुत्थिओ दुत्थिओ य कुलपुत्तओ एगो ॥ ६५४२ ॥ सवहेण वि मुज्झइ सो जइ जिज्जिओ नियगिहमि कईया वि । बहुमलविलीणअइजुन्नहंडिया खंडपावरणो || ६५४३ ॥ दीणमुही दीणमुहि त्ति तस्स कालि व्व कालकिसदेहा । पयडहियट्ठीवंसयगयरो अस्थि पियभज्जा ॥ ६५४४ ॥ अन्नोन्नं पविसंता दुव्विहडाविरलदीदंता से । कुव्वंति कुकम्म च्चिय कयसणभोज्जंतरायं च ।। ६५४५ ॥ जावज्जीवियदुव्विसहदुत्थया दूरदूमियमणाई ।। दिवसाई कहकहमवि गर्मिति अइकट्ठओ ताई ॥ ६५४६ ॥ एत्थंतरम्मि सिहियकुलगिज्जंतो गज्जिवज्जिराउज्जो । सुरधणुजलसरवरिसो पत्तो पाउससरियनरिंदो ॥ ६५४७ ॥ हरिधणुगणरयणाभरणभूसिया मेहडंबरावरणा । पाउसपियसंगे विव नहस्सिरी किरइ रससेयं ॥ ६५४८ ॥ सामलमेहो विलसिरबलाहओ सहइ फुरियविज्जुभरो । लवणोयहि व्व डिंडीरपंडुरो जलि-जलिवडवग्गी ॥ ६५४९ ॥ परिफुट्टकेयईवणधूलीपडलं दिसासु वित्थरइ । जत्थामयदाणज्जियजसो व्व जलहरनरिंदस्स ॥ ६५५० ॥ दीसंती पंतिठियमहुयराइं बहुसेयकेयइदलाई । आणा पत्ता ईव मयणनिवइणो जम्मि लिहियाइं ॥ ६५५१ ॥ दिसि-दिसिजलबिंदुजालजुयनीलतणभराधरणी । रेहइ मरगयकुट्टिमतलकयमुत्ताहलभर व्व ॥ ६५५२ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001445
Book TitleAnanthnath Jina Chariyam
Original Sutra AuthorNemichandrasuri
AuthorJitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1998
Total Pages778
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, N000, & N001
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy