SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 538
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ रयणसुंदरकहा ५०९ दिती दिदि चच्चर-चउक्क-गोउरपरिब्भमिरलोए । पत्ता पकीलिउं कुसुमपरिमलाभिहमहोज्जाणं ॥ ६५२७ ॥ (कुलय) अवलोयंती अंबयवणाई कलरवे कोइलकुलाई । पेच्छंती पुप्फियलयरुणझुणिरब्भमरविंदाई ॥ ६५२८ ॥ नच्चावंती दोलं दोलिरमिहुणाई गुरुतरुतरूसु । ठाणे ठाणे मइरापाणपरं लोयमिक्खंती ॥ ६५२९ ॥ कयलीहरेसु कोलारसाउलं जुवजणं नियंती सा । एवं भमिरी दुमसंडमंडली मंडिए तम्मि ॥ ६५३० ॥ कत्थविय सुहपएसम्मि कणयपंकयमहासणासीणं । पेच्छइ केवलनाणिं मुणीसरं साहुपरियरियं ॥ ६५३१ ॥ देसंतं तद्देसामरनरनारी सरूवपरिसाए । सद्धम्मं निम्मूलुंमूलिय मोक्खत्थिदुक्कम्मं ॥ ६५३२ ॥ तं दटुं सा बाला परिहरिय सुहासणा सही सहिया । । कोऊहलेण केवलिकमकमलं तं समणुपत्ता ॥ ६५३३ ॥ तो तम्मुणिंदवयणारविंदमभिपेच्छिरी गया मुच्छं । पडिया य महीवढे निम्मीलिया न सयवत्ता ॥ ६५३४ ॥ तो झ त्ति ससंभमधावमाणदासीवियस्सिविसरेण । सिसिरोवयारकिरियाहिं ण ठिया चेयणं कुमरी ॥ ६५३५ ॥ आपुच्छिया य मुच्छाए कारणं भणइ पुच्छह मुणिंदं । इय जंपियभत्तीए तीए पणओ विमलनाणी ॥ ६५३६ ॥ भणियं च पहु ! इमा मह रिद्धी खवगप्पसायओ जाया । अहवा गुरुप्पसाएण पाणिणं किन्न कल्लाणं ? ॥ ६५३७ ॥ ता से वयंसिवग्गो नमिऊणमणंतनाणिपयपउमं ।। पुच्छइ पहु ! अम्ह सहीए कारणं कहह मुच्छाए ? || ६५३८ ॥ आह पहू आयन्नह आरामपरंपरा परिखित्तो । आरामसुंदरो नाम अत्थि गामो समिद्धजणो ॥ ६५३९ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001445
Book TitleAnanthnath Jina Chariyam
Original Sutra AuthorNemichandrasuri
AuthorJitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1998
Total Pages778
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, N000, & N001
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy