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________________ ५०८ विहयाहियस्सिरीओ बहुसुमणसपत्तवित्तसाहसिओ । उन्नयखंधो किसलयकरो य जो रेहइ तरु व्व ॥ ६५१४ ॥ तस्स पिया पियालावमणहराहरियरइसिरी रूवा । नामेण विलासवई, कंता भत्तारभत्तिपरा ॥ ६५१५ ॥ सिरिअणंतजिणचरियं जा असमसुहा वि महासई वि असरिसअलाववयणा वि । तह वि प्पिया निवइणो न नियइ नारी वसो दोसे ॥ ६५१६ तीए सह भूरिभोगोवभोगउब्भूयसुहरसुक्करिसा ! जंतं पि न मुणइ कालं निवो सग्गे सुरवइ व्व ॥ ६५१७ ॥ सुहसिविणसूईया ताण अत्थि कन्ना मणुन्नलायन्ना । नामेण रयणमाला सामलबाला पिहुलभाला ॥ ६५१८ ॥ गोरी वि सई वि वरस्सिरी वि विलसिररई सवित्ती वि । दईया पिया वि हु बाला जं सा कन्ना तमच्छरियं ॥ ६५१९ ॥ दट्ठूण रूवरिद्धिं जीए संभोय- भावणवसेण । विम्हरियच्छिनिमेस व्व अणिमिसत्तं सुरे पत्ता ॥ ६५२० ॥ रमणीरयणं अन्नं पि अस्थि किं वा न एरिसं भुवणे । तप्पिच्छणत्थमिव परियडंतगयणेण ससि - रविणो ॥ ६५२९ ॥ गुरुणा मईए ससिणा कलासु वाईसरीएसु कइत्ते । सा विरईय - सन्नेज्झ व्व एय अत्थेसु पत्तट्ठा ॥ ६५२२ ॥ नवजोव्वणुप्पभावुल्लसंतसोहग्गचंगअंगलया । पेच्छइ जणाण हियया इह रइहेलाए हरिणच्छी ॥ ६५२३ ॥ अह अन्नया कयाइं समसिंगारविरायमाणसव्वंगी । समवयवयस्सिया दासचेडियाचक्कपरिवारा ॥ ६५२४ ॥ आरूढा रयणसुहासणम्मि सियछत्तअंतरियतरणी । तरुणीकरकमलुल्लसिरचारुचमरोहसोहसिया ॥ ६५२५ ॥ मागहबहूया ओग्गीयजयजयारावपुव्वथुइपाढा । वज्जिरजय आउज्जासुहडुब्भडचडियपरिवेढा ॥ ६५२६ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001445
Book TitleAnanthnath Jina Chariyam
Original Sutra AuthorNemichandrasuri
AuthorJitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1998
Total Pages778
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, N000, & N001
File Size10 MB
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