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________________ .५९३ कुसुमसेहरकहा रम्म पि तव्विओए उज्जाणं पिइवणं व दुक्खकरं । कलयंतो कुमरो तुरियं तुरयमारुहियसंचलिओ ॥ ७६१२ ॥ नयरपओलिं पविट्ठो सुणइ समाउलियलोयहलबोलं । नियई य गुरुतरघरपुरसालारूढं सभयलोयं ॥ ७६१३ ॥ किमिमं ति कयवियक्को पेच्छइ सुन्नासणं गयाहिवई । पाडतं पासाए मारतं तुरय-नरकरहे ॥ ७६१४ ॥ उरणागरिसियसंकलसरेण नियडयखडक्खडाए य । लगज्जीएण य जणं जो जाणावंतो व धावेइ ॥ ७६१५ ॥ । मह भारक्कंता भूमीमुत्थिज्जउ त्ति कलिउं व । संचंतो गुरुफुक्कारसिक्करासारसलिलेण ॥ ७६१६ ॥ बलकन्नतालचालियससहरुसियचारुचमरजुयलेण । जो वीयइ दंतसुहासणट्ठियं रायलच्छि व्व ॥ ७६१७ ॥ स्टुं सुहासणट्ठियनिवतणयं धाविओ करी तो सा । संपाए समुत्तिन्ना नियडेणत्थे थिरो को वा ? ॥ ७६१८ ॥ पीणपओहरगुरुतरनियंबभरमंथरक्कमगईए ।। नासिउमतरंती सा गहिया करिणा कुरंगच्छी ॥ ७६१९ ॥ दूरुक्खित्ताए पवणपसारिओ तीए कुंतलकलावो । समयगयकडतडुड्डीणभमरनियरो व्व रेहेइ ॥ ७६२० ॥ . वियसियसिरीसकुसुमोहसमहियप्फासलालसेणं व ।। गाढं गएण नियकरदंडेणालिंगिया बाला ॥ ७६२१ ॥ करिणा हरिणकमुही सुमुही विहिया विहाइ गयणयले । नियकुंभतत्थणाण व पीणत्तं दठुकामेण ॥ ७६२२ ॥ मा मह भएण एसा मुच्छिज्जउ इय विभाविऊण करी । तं वीइय व्व चलकन्नतालजयतालयंटेहिं ॥ ७६२३ ॥ तं दटुं रायसुओ झड त्ति मुत्तुं तुरंगमं वेगा । उद्घाईओ गयं पइ हक्कंतो कक्कस-सरेण ॥ ७६२४ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001445
Book TitleAnanthnath Jina Chariyam
Original Sutra AuthorNemichandrasuri
AuthorJitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1998
Total Pages778
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, N000, & N001
File Size10 MB
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