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________________ १२ ता सुब्भु ! मए कहिओ पियाए रिट्ठउरिराय अंगरुहो । रूवेण न जस्स समा अमरासुर - खेय वि धुवं ॥ १३० ॥ तीए च्चिय रमणीयणमज्झे होही धुवं जयपडाया । जा तस्स पियासद्दं उव्वहिही असमसोहग्गा ।। १३१ ॥ सिरिअणंतजिणचरियं दासितं पि हु पुन्नेहिं लब्भए नूण तस्स नरमणिणो । किं पुण सलाहणिज्जं भुवणस्स वि सहचरितयं ॥ १३२ ॥ ( कमलावलीए उम्मायावत्था) इय कुमरवन्नणस्सवणजायपोढाणुरायरसियाए । कुमरीए सहिमुहेणं वाहरियं पक्खिमिहुणं तं ॥ १३३ ॥ कंचणमुद्दाओ कमेसु रयणरम्माओ तस्स निहियाओ । कंठेसु कंठियाओ वि मुत्तासेणीहिं विहियाओ ॥ १३४ ॥ तो तं विसज्जिऊणं नरिंदतणया सुहासणासीणा । संपत्ता नियभवणे उम्मीलियविरहवेयल्ला ॥ १३५ ॥ अद्दिट्ठेणं वि कुमरेण तीए सहस त्ति हिययमवहरियं । वियसियवणराईए परिमलपसरो व्व पवणेण ॥ १३६ ॥ सन्निहियं पि मममिमा मोत्तमपुव्वम्मि निवसुए रत्ता । इय अवमाणवसेण व समुज्झिया सा विवेण ।। १३७ | सहचारियं विवेयं अणुसरिय गया रई वितं मुत्तुं । अहव पवित्ति - निव्वित्ती उ हुंति सममेगजोगीण ॥ १३८ ॥ नाउं विवेयमुक्का गहिया सा असुह - अरइ-अवेईहिं । अहवा छिड्डसएसुं भूयसयाई पि पविसंति ॥ १३९ ॥ रायसुयअदंसणपवणपसरपज्जालिओ व्व वित्थरिओ । तीए मणोवणगहणे सुदुस्सहो विरहदावग्गी ॥ १४० ॥ तो तत्तावुत्तत्ताए तीए चंदणरसच्छडासारो । सच्चंकारं पडिडज्झिरो स समुग्गिरइ सोरंभं ॥ १४१ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001445
Book TitleAnanthnath Jina Chariyam
Original Sutra AuthorNemichandrasuri
AuthorJitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1998
Total Pages778
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, N000, & N001
File Size10 MB
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