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तो संविग्गा ते बिंति तुम्ह मग्गं वयं पि अणुसरिमो । तो सव्वो मोयाविय जणया दिक्खं पवज्जंति ।। ७९३५ ॥ कयबालकालबंभव्वया वि संजायबहुसुया सव्वे ।
तो गुरुणा विज्जुपहो ठविओ जोगो त्ति सूरिप || ७९३६ ॥ सो सव्वत्थ वि भव्वे पडिबोहंतो विहारमायरइ । अज्जं पुण नंदीसरजिणबिंबे वंदिउं चलिओ || ७९३७ ।। इह पत्तो सत्थाहिव ! तुम वेरग्गकारणं जमहे । पुट्ठो तं तुह कहियं तं सोउं भणइ सत्थाहो || ७९३८ ॥ पेच्छंति मयच्छीणं पहु ! सव्वे विहु पभूयविलियाई । नवरं कस्स वि जायइ तप्पडिबोहो जहा तुम्ह || ७९३९ ॥ एयाओ च्चिय भवसुहसव्वस्समवस्समेव मूढाण । रायरहियाण दूरं दुक्खपयं न उणमन्नयरं ॥ ७९४० ॥ नूणं पहु ! बहुकल्लाणठाणमत्ताणमित्थमन्नामि । रन्ने वि जेण पत्ता तुब्भे ता कहह सुहहेउं ।। ७९४१ ।। आह पहू भववासो आवासो तिक्खदुक्खलक्खाण । तापत्तं मणुयत्तं मा हारह करह अप्पहियं ॥ ७९४२ ॥ तं पुण सुदेव - गुरु- धम्मतत्तजोएण जायए नियमा । ता रोगद्दोस असियम्मि देवे मई कुणह ॥ ७९४३ ॥ आराहह निग्गंथं अणीहयं धम्मियं सुसीलगुरुं । जम्मि चराचरजीवाण रक्खणं कुणह तं धम्मं ।। ७९४४ ॥ जं वीयरायदोसेहिं दंसियं मुणह तं सया तत्तं ।
जं चत्तारि वि चउगइहराइं एयाइं भव्वाण ॥ ७९४५ ॥ जइ वि हु गुरुप्पमाया गिहिणो न कुणंति सव्वगिहिधम्मं । तह विहु एक्का वि कया जिणपूया हरइ संसारं ॥ ७९४६ ॥ जइ वि अणेगविहा सा तह वि हु सुमहुरे रसुत्तमफलेहिं । अंबयबिज्जउराईहिं विरईया वियरइ सुहाई || ७९४७ ||
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सिरिअणंतजिणचरियं
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