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________________ ५१६ सिरिअणंतजिणचरियं दठ्ठे सुवन्नवुठि गामाहिवई गहेउमारद्धो । सगडाई पउणिऊणं गहिच्छिउं उत्थियं झति ॥ ६६९८ ॥ तयणु सुवन्नट्ठाणे संजाओ मुक्कपेक्कपुक्कारो । उड्ढीकयसुंडादंडचंडगलगज्जिदुद्धरिसो ॥ ६६१९ ॥ मसिणियसुवन्नचुन्नच्छडाकडारोरुकेसरपहाहिं । परिविरयंतो दूरं विज्जुभरा पिंजरं च जयं ॥ ६६२० ॥ दीहरनंगूलदढप्पहारकंपावियावणीवीढो । वज्जंकुससरिसक्कनहरचवेडुब्भडायारो ॥ ६६२१ ॥ उद्दंडपंडुदंतो सरहो उद्धाईओ गुरुरणं । तो तब्भयभरविहुरो सप्परियरो ठक्कुरो नट्ठो ॥ ६६२२ || (कुलयं ) एत्थंतरंमि विष्फुरियफारतणुतेयपसरदुनिरिक्खा । पयडीहूया अमरप्पलयुब्भवसहसकिरण व्व ॥ ६६२३ ॥ जंपंति साहुदाणाणंदियचित्तेहिं दाउमम्हेहिं । सहस त्ति कणयकोडीओ दुत्थिओ सत्थिओ विहिओ || ६६२४ ॥ तत्तो जो लवमेत्तं पि गिण्हही एय संतियं कणयं । अम्ह पभावओ सो मरिही सहसा सिरं फुडिउं ॥ ६६२५ ॥ जस्स पुणो सयमेसो वियरइ वद्धंतनेहभरपसरो । सो विलसिउं सच्छंदं न भणामो किं पि तत्थ वयं ॥ ६६२६ ॥ इय जंपिऊण तिअसा तिरोहिया झ त्ति गयणगब्भम्मि । सरहट्ठाणे पुणरवि जच्चं चामीयरं जायं ॥ ६६२७ ॥ संगहियदुत्थिएणं कारवियं तत्थ तयणुधवलहरं । थिरथोरथंभठियसालिहंजियं विलसिरगवक्खं ॥ ६६२८ ॥ उत्तमलक्खणलंछियगत्ता पुत्ता वि ताणमुप्पन्ना । सिरिधर - सिरिदत्त - सिरप्पभाभिहा रम्मरूधरा ॥ ६६२९ ॥ परिपाढिऊण परिणाविया य ईसरसुयाओ रम्माओ । जयसिरि- सिरीजया नामियाओ कुवलयदलच्छीओ ॥ ६६३० ॥ For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001445
Book TitleAnanthnath Jina Chariyam
Original Sutra AuthorNemichandrasuri
AuthorJitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1998
Total Pages778
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, N000, & N001
File Size10 MB
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