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रयणसुंदरकहा
भाइ मुणी कम्माई विचित्तरूवाई ऐट्ठि ! जं तेण । के वि हु अइवसुहिणो अवरे पुण दुक्खिया दूरं ।। ६०६२ ॥ के वि पुणो अच्चतं सुहिया होऊण हुंति अइदुहिया । पुणरवि भुंजंति सुहाई रयणसुंदरकुमारो व्व ॥ ६०६३ ।। पुणरवि पणामपुव्वं पुच्छर सेट्ठी धणड्ढओ भयवं ! । साहह मह एय कहं भणइ मुणी सोम ! निसुणेसु ।। ६०६४ ॥ ( रयणसुंदर कहा)
मणिजिणहरानिलचलद्धयालिरणज्झणिरकिंकिणिरवेण ।
बहिरइ जा दिसिचक्कं समत्थि सा मणिमई नयरी ॥ ६०६५ ॥ जा पउमरायकुट्टिमपहं महानीलभवणकिरणेहिं । अवसारइ संझं पिव पसरंतपओसतिमिरेहिं ॥ ६०६६ || विलसंतगया बहुसत्तिसंगया भूरिचक्कसंकिन्ना । जा सहइ मग्गणजुया आउहसाल व्व नरवइणो ॥ ६०६७ ॥ उव्वह तप्पत्तं मणि व्व मणिसुंदरो महाराया । मज्जायरूवसोहो अकलंको चित्तत्तो य ॥ ६०६८ || संगहियत्थो सज्जियगुणो य वावारियस्सरो रिउसु । समरेसु मुहि कुलेसुं व जोग्गया रयणकयचित्तो ॥ ६०६९ ॥ सल्लक्खणासिओ जो परिविलसिरभूरिउम्मियकरो य । बहुरायहंससेविय पयपउमो सोहइ दहो व्व ॥ ६०७० ॥ तस्सत्थि पिया दईया नामेण मणिप्पहो मणि-पह व्व । विगयतमा पयडीक्यनिस्सेसपयत्थ- सत्थाय ।। ६०७१ ।। परिविलसमाणपत्ता विब्भमरसियाए बालकलिया य । कुंदकलियालिरयणा आरामसिरि व्व जा सहइ || ६०७२ | विगयरया वि सुदंता पइव्वया विहु सया विवरवेसा । सच्चा वि अलियमुही जा घरवाहा अदोसा वि ॥ ६०७३ ।।
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