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करि - हरि - वसह - सुहासण - संदण - लंघिणिय-वहिलपमुहाई । गिण्हंति जायगा दायगाण पासाओ जाणा ॥। १९९९ ।। नवसालि-सूय- वंजण - पाणय-पक्कण- पमुहभोज्जेहिं । भोइज्जइ सव्वत्थ वि भोयणसालासु छुहियजणो || १९२० ॥ जाइफलेला-किम्मीरि-पत्तकप्पूर-तय- लवंगजुओ । भुतत्तरम्मि दिज्जइ, तंबोलो सव्वलोयाण ॥ १९२१ ॥ कुंकुम - मयमय - घणसार- अगरु - गोसीसचंदणाईणि । सुरहीणि लहंति विलेवणाणि निच्चं पि जायंता ॥। १९२२ ॥ इय केत्तियं च भन्नइ जो जं मग्गइ महग्घमवि वत्युं । दिज्जइ तं तस्स धुवं, अंकेडं कणय-मुल्लेण ॥। १९२३ ॥ निच्चं पि तरणिउदया, ता दिज्जइ जा दिणस्स दोपहरी । वरसु वरं वरसु वरं ति भन्नइ पडहएण जणो || १९२४ ॥ कणयस्सेक्का कोडी, अहिया लक्खढगेण निच्चपि । जायगजणस्स दिज्जइ, वरिसस्स भवा तम्मिमा संखा तिन्नि सयाई कोडीण इट्ठासी संखकोडिअहियाई । असीइ होइ लक्खाण वच्छराण दाणमाणमिणं ।। १९२६ ॥ सव्वे वि जिणा एत्तिय मित्तं चिय दिति वच्छरे कणयं । तित्थेसराणुभावा नाहियगाही भवइ को वि ॥ १९२७ ॥
सिरिअणंतजिणचरियं
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तह तिहुयणेक्कपहुणा, सव्वस्स वि दिन्नमत्थि लोयस्स । न जहा जए वि नज्जइ नामं पि हु जायगजणस्स || १९२८ ॥ तो तिजयसामिणा नाणनायसव्वुत्तमम्मि लग्गम्मि | अहिसित्तोऽणंतबलो कुमरो रिद्धीए नियरज्जे ॥ १९२९ ॥ दिज्जंत भूरिदाणो, सुहि- सज्जण-सयण - जणियसम्माणो । सयलजणाणंदयरो जाओ रज्जाहिसेयमहो । १९३० ॥ तयणु भुवणाहिनाहे, दिक्खाग्गहणुस्सुयम्मि सहसति । जाओ आसणकंपो बत्तीसाए वि सुरिंदाणं ।। १९३१ ।।
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