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रयणसुंदरकहा जं ताओ व तक्कहणाओ तासिओ झ त्ति जंति भूयाई । संति करणे व्व तीए विट्ठाए वि समइ गहपीडा ॥ ६१९० ॥ वसियरण-जरीकरणुच्चाडण-थंभण-विमोहणाईयं । कप्पलयाए व जीए सरियाए वि सज्झए सव्वं ॥ ६१९१ ॥ वियरइ रिद्धी रोराण देइ असुयाणमुत्तमे पुत्ते । किं बहुणा ? सा चिंतामणि व्व वंछियपयाणेसु ॥ ६१९२ ॥ अणिमा १ महिमा २ गरिमा ३ लघिमा ४ ईसित्त ५ महवसित्तं च ६ तह सव्वकामिय तं पि उ ७ जत्थ तत्थोवाइन्नं ॥ ६१९३ ॥ अट्ठ वि एयाओ महासिद्धीओ फुरंति तीए सह सहस त्ति । अवरं पि कोउयाई, नत्थि तयं जं न सा मुणइ ॥ ६१९४ ॥ चुलसी संखा वि हु चेडया वि आएसा कारयावस्सं । चेड व्व चाडुनिरया कुणंति कज्जाई जीए सया ॥ ६१९५ ॥ किं बहुणा ? भुवणब्भंतरम्मि जं किं पि दुक्करं कज्जं । तं लीलामेत्तेण वि सिज्झइ तीए पसाएण ॥ ६१९६ ॥ (कुलयं) तीए पसायपत्तं अच्चंत जोगसिद्धिनामाहं । पाएण तप्पसाया जाया अहमवि य किंचिन्नू ॥ ६१९७ ॥ विणयाइगुणावज्जियमणाए जोईसरीए मह दिन्नो । अणिमाइअट्ठसिद्धिप्पसाहओ उत्तमो मंतो ॥ ६१९८ ॥ ता एगभत्त-भूसयण-बंभचेराइएहिं तस्स कया । मंतस्स मए बारस वरिसाई पुव्वसेवा वि ॥ ६१९९ ॥ इण्हि तु एगरत्तिय उत्तरसेवाए अवसरो देव ! । साहसियुत्तरसाहयनरसाहिज्जेण सा होइ ॥ ६२०० ॥ निउणं निरूविओ वि हु सच्चविओ देव ! नेव साहसिओ । निस्सेसभुवणगब्भे निब्भयमेगं तुम मुत्तुं ॥ ६२०१ ॥ भवसयसहस्स दुलहं लड़े मणुयत्तमुत्तमं राय ! । कज्जो परोवयारो सया वि जेणेरिसं भणियं ॥ ६२०२ ॥
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