SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 513
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ૪૮૪ दो पुरिसे धरउ धरा अहवा दोहिं पि धारिया धरणी । उवयारे जस्स मई उवयरियं जो न पम्हुस || ६२०३ ॥ तहा उदए पत्ते उत्तम - उवयारं तह करेज्ज सविसेसं । पच्चुवयारमईणं मणोरहा जह विलिज्जति ॥ ६२०४ ॥ ता सामिसाल ! सामलचउद्दसीनिसिनिसीहसमयम्मि । तुह साहिज्जेण झड त्ति सिज्झए पवरमंतो ॥ ६२०५ ॥ अवहीरंतेण पुणो तुमए एयमहमत्तणो मन्ने । विहलं चिय संजायं कट्ठमिमं पुव्वसेवाए ॥ ६२०६ ॥ परमत्थेणं तर च्चिय, दिन्ना सिद्धी तमायरंतेण । ता मह करुणं काउं, साहेज्जेण कुण पसायं ।। ६२०७ ॥ जं न धरंति सपाणे वि पत्थणाभंग - भीरुणो गुरुणो । दक्खिन्नमहोयहिणो, परोवयार - व्वसणरसिया ॥ ६२०८ ॥ ता पहु ! महईए अहं आसाए तुह समीवमल्लीणा । अवसोयणीए विज्जाए, सोविया जामिगिल्ला वि ॥ ६२०९ ॥ भविही तिही - पहाए सच्चिय सामा चउद्दसी देव ! । निद्दायंतो दिट्ठो तुमं मए रयणपल्लंके ॥ ६२१० ॥ ता सुत्तं उट्ठाविउमतरंती भयुब्भरब्भमिरनयणी । आरुहिउं पासाए सेज्जाए ठिया विचिंतेमि ॥ ६२११ ॥ सिरिअणंतजिणचरियं बीहेमि निवं जग्गावंती गोसम्मि मंतसिद्धिविणं । ता मह कट्टं विहलं ति सोगओ जाव रोएमि ॥ ६२१२ ॥ ता देव ! तए आगंतुमिह अहं रूयणकारणं पुट्ठा । कहियं च तुह पुरो पहु ! ता मह सिद्धी तुहायत्ता ॥ ६२९३ ॥ आयन्निरं तदुत्तं निवई चिंतइ वराइया एसा । अंगीकय बहुकालिय, सकट्ठविहलत्तणुव्विग्गा ॥ ६२१४ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001445
Book TitleAnanthnath Jina Chariyam
Original Sutra AuthorNemichandrasuri
AuthorJitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1998
Total Pages778
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, N000, & N001
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy