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रयणसुंदरकहा इहइ मह साहेज्जं ता काउं किमिह जुज्जए एत्थ । अहवा परोवयारो, जुत्ते देहे पडणधम्मे ॥ ६२१५ ॥ देहो असासओ सासओ जसो ता तमेव मे जुत्तं । किणिउं परोवयारेण संपयं जेणिसं भणियं ॥ ६२१६ ॥ के केन गया महिमंडलम्मि, ढरढुल्लिऊण दहदियहे । विप्फुरइ जा ण कित्ती, गया वि ते न हु गया हुंति ॥ ६२१७ ॥ आचंदक्कं नंदंतु ते सया, जाण सिय-जसप्फुरियं । रविरोसेण व पयडइ, दिणे वि रयणियरजोण्हभरं ॥ ६२१८ ।। इय भाविऊण भणियं निवेण भद्दे ! अभिवंछियं कुणसु । उत्तरसाहयसाहेज्जकरणं सज्जोहमिहि पि ॥ ६२१९ ॥
सोउं सा निययाभिसंधिसंसिद्धिसंभवणतुट्ठा । काऊण मणिविमाणं भणइ पहुं चडह इह झत्ति ॥ ६२२० ॥ तो राया आरूढो विमाणमणिमत्तवारणुच्छंगे । एयणासणे निविट्ठो उवविट्ठा विट्ठरे सा वि ॥ ६२२१ ॥ अह संचलियं तं रणज्झणंतचलकेउरकिंकिणीजालं । पत्तं च मुहुत्तेण वि उज्जेणिपुरीए तीए गिहो ॥ ६२२२ ॥ तो हंसरोमनिम्मविय सेज्जतूलीए सोवहाणाए । एयणीए सो पसुत्तो नरेसरो गोससमयं जा ॥ ६२२३ ॥ पडिबुद्धो य पभाए पुरीनिरिक्खणकुऊहलाउलिओ । कयगोससमयकिच्चो विणिग्गओ वंठवेसेण ॥ ६२२४ ॥ तिय-चच्चर-रच्छा-वण-मंदिर-सुरमंदिराई पेच्छंता । अवलोइज्जइ लीलावईहिं, मयणो व्व ससिणेहं ॥ ६२२५ ॥ दहुँ उदारधारं, तं बिंति परोप्परं पुरिसप्पवरा । सप्पुरिसरूवधारी को वि इमो भमइ सक्को व्व ॥ ६२२६ ॥ नूणं सामन्नाणं सलक्खणा नेवमागिई होइ । ता कोइ इमो राओ त्ति गुणिजणो ईय पयंपेइ ॥ ६२२७ ॥
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