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________________ ४८६ सिरिअणंतजिणचरियं कुवलयदलवेली दीहरेहिं नयणेहिं पेच्छिरो नयरिं । । जा मत्तहत्थिमंथरकयकमगमणो परिब्भमइ ॥ ६२२८ ॥ नारायमंदिरा भूरिदाणमिलमाणमुहरभमरेहिं । बंदीहिं निवो व्व करी, वेढिज्जंतो विणिक्खंतो ॥ ६२२९ ॥ अग्गारोहप्पच्छासयणिया धूणीए पाडिया तेण । मच्छीउवगोफुरणं काउं च महेण व गएण ॥ ६२३० ॥ जोउव्वो अच्चंतं दूरं सिंदूररत्तकुंभदुगो । सोहइ समकालुग्गय नवरवि-जुयलो व्व उदयगिरी ॥ ६२३१ ॥ जो अच्चंतं सामो, मणिभूसणभूरिकिरणचित्तंगो । नवजलहरो व्व सुरचावचक्कसमलंकिओ सहइ ॥ ६२३२ ॥ जो उड्ढीकयकरमुक्कपेक्कपुक्कारसिक्करा सारं । अंतोहुत्त अमायं तमो त्ति ओहं च विक्खिवइ ॥ ६२३३ ॥ भग्गालाणं सुन्नासणं च गुरुवेयपसरभयजणयं । तं दह्णारूढो लोगो घरपुरतरुसिहरेसु ॥ ६२३४ ॥ पासायपउलीओ पाडतो भूरुहे य भंजंतो । सगडाई विहाडिंतो मारतो तरलतुरए वि ॥ ६२३५ ॥ ताडेउं पाडतो तठे करहेयथोरहत्थेणं । चूरंतो चरणेणं भयपडिए कायरे पुरिसे ॥ ६२३६ ॥ तड्डविय कन्नतालं, जत्तो जत्तो निरिक्खइ सधीरं । निवडंति तत्थ तत्थ य नर-तिरिया तस्स नासंता ॥ ६२३७ ॥ तग्गयभयउब्भंता हल्लोहलिया पुरी समग्गा वि । सासंको च्चिय भूमीए भमइ लोओ सकज्जे वि ॥ ६२३८ ॥ एत्थंतरम्मि चउहट्टयम्मि कज्जत्थिलोयपडिपुन्ने । पुरिमिक्खंतो पत्तो, महीवई मत्तहत्थी वि ॥ ६२३९ ॥ बाला रुयंति कंपंति कायरा कामिणीओ कंदति । सूरा वि भीरुयत्तं, भयं ति पत्ते करिकयंते ॥ ६२४० ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001445
Book TitleAnanthnath Jina Chariyam
Original Sutra AuthorNemichandrasuri
AuthorJitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1998
Total Pages778
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, N000, & N001
File Size10 MB
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