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________________ नगर के राजपुत्र प्रतापरथ के रूप पर मुग्ध है और वह उससे विवाह करना चाहती है। रानी ने यह बात राजा से कही । राजा ने सोचा - राजकुमारी ने अपने लिए योग्य वर का चुनाव किया है । राजा ने तुरंत एक कुशल अवसरज्ञ दूत को बुलाया और आदेश दिया-भद्र ! तुम अरिष्टपुर नगर के राजा पद्मरथ के पास जाओ और हमारा परिचय देकर कहो कि मेरी पुत्री आपके पुत्र कुमार प्रतापरथ के साथ विवाह करना चाहती है । चतुरदूत अपने स्वामी की इच्छा को समझ गया । महाराज को प्रणाम कर बोला - जैसी आपकी आज्ञा । तुरंत ही वह अरिष्टपुर की ओर चला । अल्प समय में ही वह अरिष्टपुर पहुँच गया । पद्मरथ राजा के पास आकर दूत ने कहा - "मै कमल पुर के राजा कमलकेशर का दूत हूँ । राजा ने दूत का स्वागत करते हुए कहा - हम कमलकेशर राजा का अभिनन्दन करते हैं । हमारे लिए क्या समाचार लाये हो ? दूत ने कहा - महाराजा कमलकेशर ने आपको अपनी शुभकामनाएँ भेजी हैं और कहा है कि-मेरी पुत्री का विवाह आपके पुत्र प्रतापरथ के साथ हो । आप अपनी स्वीकृति देकर हमें कृतार्थ करें । राजा ने कहा - दूत ! आपके राजा का प्रस्ताव हमें स्वीकार्य हैं । हम शीघ्र ही विवाह के लिए राजकुमार को भेज रहे हैं । यह शुभ सन्देश आप अपने राजा तक पहुँचा देना । दूत का सन्मान कर राजा ने उसे विदा किया । इधर पिता की आज्ञा प्राप्त कर राजकुमार प्रतापरथ अपनी विशाल सेना, मंत्री एवं सामन्तों के साथ कमलकेशर पहुँचा । राजा ने राजकुमार का भव्य स्वागत किया । नगर प्रवेश के बाद राजकुमार ने देखा - राजा और प्रजाजन अत्यन्त शोकाकुल है अन्तःपुर से रुदन की आवाज आ रही है । राजकुमारने राजा से पूछा - आप लोग इतने चिन्तातुर क्यों हो ? राजा ने कहा - राजकुमार ! आप जिस राजकुमारी के साथ विवाह करने के लिए यहाँ आये हैं उसका तो एक दुष्ट विद्याधर ने अपहरण कर लिया है । हमने राजकुमारी की बहुत खोज की किन्तु कहीं भी उसका पता नहीं लगा । उसकी खोज के सारे प्रयत्न निष्फल गये । इसी कारण हम सब लोग दुखी हैं । यह सुनकर राजकुमारने राजा से कहा - 'आप चिन्ता न करें । मैं अवश्य ही राजकुमारी का पता लगाकर उसके साथ विवाह करूंगा। यदि में राजकुमारी को आपके पास नहीं ला सका तो अवश्य अग्नि में प्रवेश कर अपने आप को भस्म कर दूँगा। ऐसा कहकर राजकुमार एक तेजस्वी घोड़े पर चढ़ा और विजयपथपुर की ओर चला । अल्प समय में ही वह विजयपथपुर पहुंचा और वहाँ के राजा विजयसेहर से मिला । उसने राजकुमारी विषयक पुछताछ की। विजयसेहर ने कहा - हम किसी केवली से ही राजकुमारी का पता लगा सकते हैं । वे केवली Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001445
Book TitleAnanthnath Jina Chariyam
Original Sutra AuthorNemichandrasuri
AuthorJitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1998
Total Pages778
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, N000, & N001
File Size10 MB
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