SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 295
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २६६ सिरिअणंतजिणचरियं उब्भडभोयसमुब्भूयरायवसजायमयणउम्माया । कस्सइ निट्ठागयनिबिडनेहनट्ठस्स उवरोहा ? || ३३८९ ॥ जायइ सीलविणासो इमीए ता मज्झ निम्मलं पि कुलं । कलुसिज्जइ अयसेणं दीवसिहा कज्जलेणं व ॥ ३३९० ॥ ता गंतूणं पुच्छामि कत्थइ केवलिं सुयाए वरं । सो निच्छएण कहिही जमत्थि नाणस्स न परोक्खं ॥ ३३९१ ।। इय चिंतिऊण मणिमयविमाणपूरियनहो गओ ससुओ । पुव्वविदेहे विजयावहे पुरे अलिकुलुज्जाणे ॥ ३३९२ ॥ पेच्छइ सुवन्नपंकयउवविठं चउरवयणवररयणं । विलसंतबंभसुत्तप्पयडीकयउत्तरासंगं ॥ ३३९३ ॥ विमलगुणअक्खमालाकलियं सच्चरणकरणपत्तजसं । नवामरवरुत्तमंगं अरायहंसं व संभुं व ॥ ३३९४ ॥ निम्मलनाणं नामेण केवलिं पेच्छिउं तयं राया । भूमियनिविट्ठो निसुणइ धम्मकहं विहियकरकोसो ॥ ३३९५ ॥ पाविय पत्थावं पणमिऊण पुच्छइ वरं नियसुयाए । "उज्जमिणो परकज्जे वि किं न गुरुणो न नियकज्जे ॥ ३३९६ ॥ आह पहु ! नहयलनिवडियस्स रिउणा हणिज्जमाणस्स । जो तुह काही रक्खं सो जामाऊ महाराय ! ॥ ३३९७ ॥ तं सोउं अभिवंदिय केवलिपयसयदलं खयरराया । पत्तो परियणजुत्तो रहनेउरचक्कवालपुरे ॥ ३३९८ ॥ चिंतइ किं को वि बली समस्थि मज्झ विसयासओ भुवणे । जेण हणिज्जं तं मं रक्खेही जो स जामाऊ ॥ ३३३९ ॥ अविकंपइ कणयगिरी चलइ मही सायरा वि हु सुसंति । तह वि न अणंतनाणिप्पउत्तमिह अन्नहा होइ ॥ ३४०० ॥ अवि पायालं सग्गम्मि जाइ सग्गो वि जाइ पायाले । तह वि न अणंतनाणिप्पउत्तमिह अन्नहा होइ ॥ ३४०१ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001445
Book TitleAnanthnath Jina Chariyam
Original Sutra AuthorNemichandrasuri
AuthorJitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1998
Total Pages778
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, N000, & N001
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy