SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 26
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ का च्यवन, जन्म, प्रव्रज्या, केवलज्ञान और निर्वाण रेवती नक्षत्र में हुआ (स्थान ५ वाँ) । उन्होंने सुप्रभा नाम की शिबिका में बैठकर हजार पुरुषों के साथ अयोध्या नगरी के बाहर देवदृष्य धारण कर दीक्षा ग्रहण की। दीक्षा के समय आपने दो उपवास किये थे । आपने प्रथम पारणा वर्द्धमान नगर में विजयराजा के घर परमान्न से किया । उस समय पांच दिव्य प्रकट हुए । आपके प्रथम शिष्य जस और प्रथम शिष्या पद्मावती थी । पीपलवृक्ष के नीचे आपको केवलज्ञान हुआ (सम. १५७) आपके पूर्व भव का नाम महिन्द्र था (आ. नेमिचन्द्र सूरि के अनुसार पूर्व भव का नाम पद्मरथ था) आवश्यक सूत्र एवं पाक्षिक सूत्र में भ. अनन्तजिन का केवल नामोल्लेख ही मिलता है । आगम के पश्चात् आवश्यक नियुक्ति में एवं उनके टीकाकार आ. हरिभद्रसूरि आ. मलयगिरि ने एवं प्रवचनसारोद्धार में भगवान अनन्तजिन विषयक निम्र सारिणी प्रस्तुत की हैं - भगवान अनन्तजिन-सारिणी १. च्यवनतिथि श्रावनवदी ७ २. विमान प्राणतकल्प ३. जन्म नगरी अयोध्या ४. जन्म तिथि वैशाखवदी १.३ ५. माता का नाम सुयशा पिता का नाम सिंहसेन लांछन श्येन शरीरमान ५० धनुष कंवरपद ७.५ लाख राज्यकाल १५ लाख दीक्षातिथि वैशाखवदी १४ पारणे का स्थान वर्धमानपुर १३. दाता का नाम विजय छद्मस्थ काल ३ वर्ष ज्ञानोत्पत्ति वैशाखवदी १४ गणधर संख्या ५० प्रथम गणधर यश साधु संख्या ६६ हजार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001445
Book TitleAnanthnath Jina Chariyam
Original Sutra AuthorNemichandrasuri
AuthorJitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1998
Total Pages778
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, N000, & N001
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy