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________________ ३१९ रयणावलिकहा देवगुरुधम्मतत्ताई धरसु जइ मोहरायमभिहणसि । . गयहयरहजोहचउधरिज्जपरिओ जयाय न किं ॥ ४०७४ ॥ भमिराण भवावत्ते सुलहाओ चक्किसक्कलच्छीओ । देवगुरुधम्मतत्ताई दुल्लहाई तु सत्ताणं ॥ ४०७५ ॥ इय निसुणियमुणीसरदेसणस्स सहस ति मंतिणो तस्स । सिवकप्पडुमबीयं उल्लसियं सुद्धसम्मत्तं ॥ ४०७६ ॥ तो भालतलनिवेसियजोडियकरसंपुडो महामंती । सामंतसेहरीकयपंकयकोसो व्व विन्नवइ ॥ ४०७७ ॥ पहु ! तुज्झ देसणादुद्धपाणओ महमणाओ अवसरिया । मिच्छा बुद्धी विवरियदरिसणी पित्तभंति व्व ॥ ४०७८ ॥ तह सारासारवियारचउरया पहु पसायओ जाया । सुचरियकम्माणु न किं जायइ जइ वा गुरुराया सा ॥ ४०७९ ॥ मह देह सव्वविरई न सामि गिण्हामि देसविरइमहं । पाविज्जते चिंतामणिम्मि को लेइ कायमणिं ॥ ४०८० ॥ गुरुणा भणियं निव्विग्घमत्थु तुह वंछियस्थकरणम्मि । तं सोउं सो पणमिय गुरूण पत्तो निययभवणे ॥ ४०८१ ॥ रन्नो सयासओ मोइऊण अप्पाणयं पसंतप्पा । धम्मम्मि धणं दाउं काउं तित्थुन्नई परमं ॥ ४०८२ ॥ पहाणविलेवणसिंगारसुंदरो सिबियमारुहेऊण । पत्तो गुरुपयपासे सुमहुत्ते दिक्खिओ तेहिं ॥ ४०८३ ॥ उवहाणुकरणपुव्वं अंगोवंगाइयं सुयं पढिउं । नियतणुनिरवेक्खं तिव्वतरतवं विरइउं बहुसो ॥ ४०८४ ॥ आलोयणाईरईयंतकिरियसुविसुद्धमणपरीणामो । मंतिमुणी संपत्तो मरिडं नवमम्मि गेवज्जे ॥ ४०८५ ॥ अहमिंदसुरसमद्धिं भोत्तुं तत्तो चुओ परप्पवरे । सिरिरयणतोरणरयणसेहरो नरवई जाओ ॥ ४०८६ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001445
Book TitleAnanthnath Jina Chariyam
Original Sutra AuthorNemichandrasuri
AuthorJitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1998
Total Pages778
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, N000, & N001
File Size10 MB
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