SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 347
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३१८ इय चिंतिऊण तेणं पणामपुव्वं पयंपियं पहु ! मे । साहसु धम्मं जेणं न होइ पुण वल्लहविओगो ॥ ४०६१ ।। भाइ गुरु एयं चिय सरूवमेयस्स भवविलासस्स । जं होइ पियविओगो अणिट्ठजोगो य उल्लसइ ।। ४०६२ ॥ सयणेहिं सह विरोहो जायइ संपज्जइ सिरीनासो । पसरइ जरा सरीरे हरंति रोयावलोयाई ॥ ४०६३ || तारुन्नं अवगच्छइ विचईओ इंति ल्हसइ लायन्नं । पासं न चयइ मच्चू निच्चं पि इमाई जं नूणं ॥ ४०६४ ता एरिसे दुरंते भववासे सव्वहा अंसारम्मि | बहुसो सयमणुभूए को मोहो मंति ! पियसि ॥ ४०६५ ॥ जणणी जणओ तणया दइया दुहियाओ बंधुणो सुहिणो । नियकज्जकयसिणेहा ता कीरइ तेसु को मोहो ? || ४०६६ ॥ निद्द व्व हरइ फुरणं चेयन्नं नासवेइ मुच्छ व्व । जलणो व्व दहइ देहं गरलं पिव मारए मोहो || ४०६७ ॥ तित्थंकरे वि रईओ जइ केवलनाणमावरइ मोहो । इयरनरे कीरंतो ता कह न भवब्भमं देइ ॥ ४०६८ | ताणत्थयरं मोहं मोत्तुं चित्तम्मि पयडिय समाहिं । देवगुरुधम्मतत्ताइं भवहराई मुणसु मंति ! ॥ ४०६९ ॥ रागोसाईया अट्ठारस संति जस्स नो दोसा । सो भुवणगुरू देवो जे उ सदोसा न ते देवा ॥ ४०७० समयन्नुणो पसंता बहिरंतरगंथवज्जिया मुणिणो । गुरुणो नेय जे पुण इयगुणहीणा न ते गुरुणो ॥ ४०७१ ।। तं चेव सुणह धम्मं जीवदया जम्मि कीरए सम्मं । तीए रहिओ अहम्मो कट्ठे वि कए किलेसफलो ॥ ४०७२ ॥ जीवाजीवाईयं नवगं तत्ताण केवलिपउत्तं । विन्नेयमनाणीहिं जं कहियं तं पुण अत्तं ॥ ४०७३ || Jain Education International सिरिअणंतजिणचरियं For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001445
Book TitleAnanthnath Jina Chariyam
Original Sutra AuthorNemichandrasuri
AuthorJitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1998
Total Pages778
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, N000, & N001
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy