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रयणसुंदर कहा
तीयुक्तो निवई पहु ! पालेज्जसु अप्पयं पयत्तेण । होहिंति भूयसाइणिपमुहाण जमेत्थ उवसग्गा ।। ६३१९ ।। सज्झाणसमारूढं रक्खेज्ज ममं पि चउदिसिभमिरो । आयड्ढियकरवालुत्तारिय उवसग्गकरखुद्दो ॥ ६३२० ॥ एवं ति भणियगया निबद्धवरवीरगं वि परिहाणो । दिढबंधुरबंधनिबद्धमुद्धमुद्दरुहसंदोहो । ६३२१ ॥
तो कड्ढियासि पट्टयसंकंतचियग्गिजायतेएण । दुट्ठे ! दुट्ठं विरईयउज्जोओ विव नमइ निवई ॥ ६३२२ ॥ तो जोइणीए अवसारिऊण नर- तिरिकरंककिमिजालं । सम्मज्जियघुसिणेण व रुहिरेणं विलिप्पिया पुहई || ६३२३ ॥ खित्तो य तीए कणवीररत्तकुसुमाण सव्वओ पयरो | खिविऊण बलिं दससु वि दिसासु मंडलयमालिहियं ॥ ६३२४ ॥ दिसिपाल -खेत्तदेवय-गहपूयाओ य झत्ति विहियाओ । उवयारियं च चउसट्ठिसंखमवि जोइणीवीढं ॥ ६३२५ ॥ पूयफल-पत्तकणिकदीविया कुसुम - मज्ज - मंसेहिं । पत्तेयं तस्स कया पूया चउसट्ठिसंखेहिं ॥ ६३२६ ॥ उग्गाहियो य गुग्गुल - धूवोवसमं समिस्सिओ तस्स । मुक्कं पसारियमुहं मंडलए अक्खयं मडयं ॥ ६३२७ ॥ नररुहिरवसाविलित्तम्मि तम्मि कणवीरकुसुमकयपूए । कयपउमासणेण बंधा उवविट्ठा सत्तिसावि तया ॥ ६३२८ ॥
नासादेसनिवेसियनयणा कणवीररत्तकुसुमाई |
मंतं समुच्चरंती मडयमुहे मुयइ धूवेउं ॥ ६३२९ ॥
जह जह झाणं आरुहइ, जोइणी निब्भया अचलचित्ता । तह तह दसदिसि दिट्ठी भमइ निवो चक्कचित्तीए || ६३३० ॥
तो सहसा भूकंपो जाओ खडहडियनरकरंकट्ठी । निग्धाओ वि भयारसियसलिलघणगयणवरसत्तो ।। ६३३१ ॥
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