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________________ आचार्य जसदेवसूरि ने तथा आ. समंतभद्रसूरि ने इस चरित ग्रन्थ का संशोधन किया ।) ग्रन्थ और ग्रन्थकार __इस चरित काव्य के रचयिता विद्वान आचार्य नेमिचन्द्रसूरि है । ये वड़गच्छीय आचार्य आम्रदेवसूरि (आख्यानकमणिकोषवृत्ति के कर्ता) के शिष्य एवं (आख्यानक मणिकोष मूल के कर्ता) आचार्य नेमिचन्द्रसूरि के प्रशिष्य है । इन्होंने वि.सं. १२१६ में वैशाख वदी बारस के दिन सोमवार को वर्द्धमान नगर में वरणग श्रेष्ठी को वसति से इस ग्रन्थ का प्रारंभ कर धवलक्क नगर के मंदिर में रहकर कुमारपाल के राज्यकाल में एक वर्ष की अवधि में १२००० श्लोक प्रमाण इस ग्रन्थ को पूरा किया । इस ग्रन्थ की रचना कवड्डी श्रेष्ठी की प्रार्थना पर की थी । इनकी गुरु परम्परा में बताया है कि बृहद् गच्छीय देवसूरि के वंश में अजितदेवसूरि थे । उनके पट्टधर आनन्दसूरि हुए । आनन्दसूरि के प्रथम पट्टधर नेमिचन्द्रसूरि, दूसरे प्रद्योतनसूरि और तीसरे जिनचन्द्रसूरि (पट्टधर) थे । जिनचन्द्रसूरि के दो प्रधान शिष्य थे । एक आम्रदेवसूरि (आख्यानक मणिकोश के वृत्तिकार) और दूसरे शिष्य श्री चन्द्रसूरि थे। श्रीचन्द्रसूरि के शिष्य हरिभद्रसूरि थे । आम्रदेवसूरि के भी छः विद्वान शिष्य थे - हरिभद्रसूरि (ये आम्रदेवसूरि के गुरुभाई श्रीचन्द्रसूरि के शिष्य है ।) मुख्य पट्टधर, दूसरे विजयसेनसूरि (पट्टधर), तीसरे नेमिचन्द्रसूरि (अनन्तजिन चरित के कर्ता), चोथे यशोदेवसूरि (पट्टधर), पांचवे गुणाकरसूरि (शिष्य) और छठे पार्श्वदेवसूरि । ___आचार्य नेमिचन्द्रसूरि ने छोटी बड़ी पांच रचनाएँ की - १. आख्यानकमणिकोश (मूल गाथा ५२), २. आत्मबोधकुलक अथवा धर्मोपदेशकुलक (गाथा २२), उत्तराध्ययनवृत्ति (श्लोक १२०००), रत्नचूड़ कथा (श्लोक सं. ३०८१), और महावीर चरित्र । तथा आचार्य नेमिचन्द्रसूरि के शिष्य आम्रदेवसूरि ने आख्यानकमणिकोश पर वृत्ति की रचना की। इसका ग्रन्थ परिमाण १४००० श्लोक हैं । आचार्य हरिभद्रसरि ने अन्य साहित्य निर्माण के साथ साथ प्राकृत में चौबीस तीर्थंकरों के चरित की भी रचना की थी । इन चौबीस तीर्थंकर चरितों में से इस समय मल्लिनाथ, चंदप्पह, अजितनाथ (अप्रकाशित) और नेमिनाथ (प्रकाशित) ये चार चरित्र उपलब्ध हैं । इस महान् अंबदेवसूरि के शिष्य नेमीचन्द्रसूरि ने प्रस्तुत अनन्तजिन चरित्र के अतिरिक्त माणुसजम्म कुलय गाथा २२, की भी रचना की थी । अनन्तजिन चरित्र के अन्तर्गत आनेवाला पूजाष्ट अंश एक स्वतंत्र कृति के रूप में आ. विजय क्षमाभद्रसूरि ने ई.स. १९४० में गांव अच्छारी से प्रकाशित किया है । प्रस्तुत अनन्तजिन चरित्र विद्वत् परम्परा में हुए आचार्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001445
Book TitleAnanthnath Jina Chariyam
Original Sutra AuthorNemichandrasuri
AuthorJitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1998
Total Pages778
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, N000, & N001
File Size10 MB
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