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________________ १७१ अणंतजिणदेसणा मंजुलखलस्सरेसुं, पसंस-निंदं च कुणइ जो नेव । सो चेव सोयनिग्गहसीलंगसमस्सिओ होइ ॥ २१६४ ॥ कोहो माणो माया लोभो चत्तारि जे इह कसाया । तन्निग्गहणसरूवं, सीलंगं चउक्कमक्खेमि. ॥ २१६५ ॥ कोवा गुरुरोगो विव, सुकयसरीरं खवेउमुल्लसिउं । पसमेण ओसहेण व जोऽवहरइ तस्स सीलंग ॥ २१६६ ॥ माणो मत्तगओ इव, अट्ठमयट्ठाणमयपरायत्तो । तं मद्दवंकुसवसं करेइ जो तस्स सीलंगं ॥ २१६७ ॥ माया गुरुखित्तं, मही अच्चंतपवंचवंचणेहिऽखिला । जो पवियारइ अज्जवहलेण तं तस्स सीलंगं ॥ २१६८ ॥ लोहमहामयरहरं, बहुआसापसरवारिपडहत्थं । सुत्तीए घडसुएण व, जो सोसइ तस्स सोलंगं ॥ २१६९ ॥ मण-वचण-कायजोगा, निजंतिया जस्स हुंति अप्पवसा । तं से सीलंगतिगं, साहिप्पंतं निसामेह ॥ २१७० ॥ रोद्दट्टज्झाणेहिं पाणी, पावाई पावइ मणेण ।। धम्मज्झाणेणं तन्निरोहओ होइ सीलंगं ॥ २१७१ ॥ अब्भक्खाणाईहिं, दुव्वयणेहिं जमज्जियं कम्मं । वयसंजमेण तम्मि, निज्जरिए होइ सीलंगं || २१७२ ॥ गमणचलणाइएहिं, पमायओ पाणिवहपरो काओ । जो संलीणं तं धरइ जायए तस्स सीलंगं ॥ २१७३ ॥ इय सतरसविहसीलं पालिंति पमायवज्जिया जइणो । नवबंभचेरगुत्ता, पसंतचित्ता महासत्ता ॥ २१७४ ॥ एयं पुणो गिहत्थाण होइ देसेण सव्वओ नेव । जं तेसिं एगिदियरक्खाए नत्थि नित्थारो ॥ २१७५ ॥ नवरं परनारीवज्जणेण सघण जायए सीलं । तह परनरपरिहारेण भन्नए तं सुसड्ढीण ॥ २१७६ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001445
Book TitleAnanthnath Jina Chariyam
Original Sutra AuthorNemichandrasuri
AuthorJitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1998
Total Pages778
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, N000, & N001
File Size10 MB
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