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________________ १११ अणंतजिणजम्मवण्णणं जिणजणणीपुव्वदिसं, समलंकुव्वंति दप्पणकराओ । अह दाहिणरुयगाओ, पत्ताओ इमाओ देवीओ ॥ १३९७ ॥ समाहारा सुपइन्ना य, सुप्पबुद्धा जसोहरा । लच्छिमई सेसवई, चित्तगुत्ता वसुंधरा ॥ १३९८ ॥ सेवंति दाहिणदिसं, भिंगारकराओ जिणगुणरयाओ । तो पच्छिमरुयगाओ, पत्ताओ इमाओ देवीओ || १३९९ ॥ इलादेवी सुरादेवी, पुहई पउमावई इय ।। एगनासा नवमिया, भद्दा सीया य अट्ठमा || १४०० ॥ संगहियतालविंटाओ, ताओ चिट्ठति पच्छिमासाए । तो उत्तररुयगाओ, इंति अट्ठ एयाओ देवीओ || १४०१ ॥ अलंबुसा मिस्सकेसी य, पुंडरिकी य वारुणी । हासा सव्वपहा चेव, हिरी देवी सिरी तहा ॥ १४०२ ॥ चामरकराओ उत्तरदिसाए ठाउं जिणं परिथुणंति । देवीओ वि दिसिरुयगाओ इंति चत्तारि एयाओ ॥ १४०३ ॥ चित्ता य चित्तकणया सुतेर-सोयामणि त्ति नामाओ । दीवयकराओ ईसाणपमुहविदिसासु चिट्ठति ॥ १४०४ ॥ अह मज्झिमरुयगनिवासिणीओ चत्तारिदिसिकुमरीओ । देवी रुया-रुयंसा-सुरूय-रूयगावईओ त्ति ॥ १४०५ ॥ काउं पयाहिणतिगं, थोउं च जिणिंदसंजुयं जणणिं । । कप्पंति नाहिनालं चउरंगुलवज्जियं पहुणो ॥ १४०६ ॥ खणिऊण वियरयं तत्थ, निहिय तं पूरयंति रयणेहिं । विरयंति रयणपीढं, तत्थ सहरियालियं रम्मं ॥ १४०७ ॥ तयणु कयलीवणाई कयाई तिन्नेव ताहिं सिसिराई । परिपक्कफलभरोन्नयसाहाई पिहुलपत्ताई ॥ १४०८ ॥ तम्मज्झे कंचणमयमंगलकलसाभिरामदाराई । घणपंचवन्नमाणिक्कभित्तिकयचारुचित्ताई ॥ १४०९ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001445
Book TitleAnanthnath Jina Chariyam
Original Sutra AuthorNemichandrasuri
AuthorJitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1998
Total Pages778
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, N000, & N001
File Size10 MB
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