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अक्खयकित्तिनिवकहा तो तेसिं सालितंदुलपसइदुगं गुरुदयाए दिन्नं से । तं घेत्तूण पविट्ठो उज्जाणभंतरे जाव || ७८४५ ॥ ता नियइ केवलिमुणिं जिणपूयफलं जणाण साहंतं । जो कुणइ जिणस्सट्ठ वि पूया तो लहइ सो सिद्धिं ॥ ७८४६ ॥ ताओ फल-जल-नेवज्ज-दीव-धूव-क्खएहिं परमेहिं । वासेहिं कुसुमेहिं य भणियाओ समयसत्थेसु ॥ ७८४७ ॥ सव्वाओ वि असत्तो तं कुणइ जिणस्स अक्खएहिं वि जो । भोत्तुं सयलसिरीओ सो अक्खयसोक्खमवि लहइ ॥ ७८४८ ।। तं सोउं सो चिंतइ न पुव्वजम्मे मए कओ धम्मो । तेण न संपज्जइ मे भमिरस्स वि भिक्खमित्तं पि ॥ ७८४९ ॥ ता जिणपूयं सालीए काउमज्जेमि सुकयसंभारं । जं भिक्खाभमणेण वि भविही मह छुहपरित्ताणं ॥ ७८५० ॥ इय चिंतिय भत्तीए नमिय मुणिं भणइ कहह कत्थ जिणो ? । पूएमि जहा तो सावएण सो जिणहरे नीओ ॥ ७८५१ ॥ जं कणयमयं मणिकिरणाकिन्नवणराइविलसिरउवंतं । कंचणगिरिं व कप्पडुमावली वेढियं सहइ ॥ ७८५२ ॥ तम्मि पविट्ठो पेच्छइ पसंतरूवं जिणेसरं रिसहं । आणंदअंसुजलकलियलोयणो भत्तिकंटईओ ॥ ७८५३ ॥ मणिमयकुट्टिममिलमाणभालमभिनमिय सामिणो तेण ।
अक्खयढोयणपूया विहिया बहुमाणसारेण ॥ ७८५४ ॥ दठूण तस्स भत्तिं नियगेहे सावएण से दिन्नं । निद्भुन्हभोयणं तद्दिणाओ सो सुत्थिओ जाओ ॥ ७८५५ ॥ तो कालगओ समभावसंगओ निवसुओ हमुप्पन्नो । दठूण केवलिमिमं तो जाईसरणमुप्पन्नं ॥ ७८५६ ॥ निब्भग्गस्स वि मज्झं रिद्धी सुगुरूवएसनायाए । जिणपूयाए कयाए जाया ईय साहियं तुम्ह ॥ ७८५७ ॥
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