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________________ ६१२ सिरिअणंतजिणचरियं तं सोउं संजाओ जणस्स जिणपूयणम्मि बहुमाणो । राया वि सावरोहो दिक्खं गिण्हड् गुरुसयासे ॥ ७८५८ ॥ . पणमिय गुरुणो नवदिक्खिए य संभासिऊण नवनिवई । खेयरवई च अमरो गओ सठाणम्मि कयकच्चो ॥ ७८५९ ॥ नवदिक्खियमुणिजुयकेवलिक्कमे नमिय नहयरिंदजुओ । फ्तो पासाए तत्थ सुत्थयं रईय रज्जस्स ॥ ७८६० ॥ खेयरविमाणसेणाए तुम्ह चरणतियं समणुपत्तो । नमिय निविट्ठो पुट्ठो नियहरणं कहसु वच्छ ! ति ॥ ७८६१ ॥ तो एय सुमरिओ चंदतेयअमरो समागओ सो हं । कहिओ य हरणहेऊ जुत्तं तुम्हं पि हियकरणं ॥ ७८६२ ॥ तं सोउं नरनाहो जंपइ भो अमरसुयणसिररयण ! । निक्कित्तिमोवयारी तमेव जए वसुवयंससि ॥ ७८६३ ॥ नियमेण वयं काहं रज्जं दाउं सुयस्स इन्हिं पि । ईय जंपिरे नरिदे सहस ति तिरोहिओ अमरो ॥ ७८६४ ॥ तो रन्ना नवनिवई अणिच्छमाणो वि ठाविओ रज्जे । गीयत्थगुरुसयासे सयं तु अंगीकया दिक्खा ॥ ७८६५ ॥ कईया वि हु सम्माणिय विसज्जिओ राइणा खयरचक्की । कज्जेसु ममाएसो देउ ति पयंपिय गओ सो ॥ ७८६६ ॥ पइदियहं पि पवुड्ढप्पयावपब्मारदुस्सहो दूरं । रिउमंडलाई राया परितावइ गिम्हतरणि व्व ॥ ७८६७ ॥ कइया वि हु वेयड्ढे विलसइ विज्जाहरिंदवाहरिओ । कइया वि घरासारे रज्जसिरिं चिंतए गंतुं ॥ ७८६८ ॥ पयडइ नीई पालइ पयाओ पूयइ जिणे गुरुं नमइ । साहइ देसे एवं वच्चंति निवस्स दिवसाई ॥ ७८६९ ॥ कालेण कित्तिमाला देवीए उदारकित्तिनामसुओ । जाओ संगहियकलो विवाहिओ रायकन्नाओ ॥ ७८७० ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001445
Book TitleAnanthnath Jina Chariyam
Original Sutra AuthorNemichandrasuri
AuthorJitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1998
Total Pages778
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, N000, & N001
File Size10 MB
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