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सिरिअणंतजिणचरियं जं जयपहुणो तुन्भे महिलामेत्तस्स पासमणुपत्ता ।। जो तुम्हाण वि पुज्जो तं पइ तम्हारिसा जंति ॥ ३९८३ ॥ दासीमेत्तेण वि होइ देव ! मह देहसंतिया सारा । सेवयसज्झे कज्जे न पसंसिज्जइ पहु ! पवित्ती ॥ ३९८४ ॥ ता सामिसाल ! सेवयलवेहिं समईए समुचिया कज्जा । विन्नत्ती पहुणो च्चिय जुत्ताजुत्तं वियाणंति ॥ ३९८५ ॥ साराकरणे निययाणु सुयणु ! को नाम जायए दोसो । इय जंपिय सो वियरइ तीए आभरणवत्थाइं ॥ ३९८६ ॥ तग्गयचित्तो राया काऊणागारसंवरं झत्ति । उठ्ठिन्तु नियप्पासायमागओ चिंतिउं लग्गो ॥ ३९८७ ॥ उप्पाइय विदेसं दइए पच्छा नियम्मि विसयम्मि । जणिया सामाणुरायं इमं खिविस्सामि सुद्धते ॥ ३९८८ ॥ ईय चिंतिय अत्थाणे ठाऊणुप्पाईया नरिंदेण । कित्तिमकडयागयनरहेण एयारिसी वत्ता ॥ ३९८९ ॥ कडयनिवासो फलिओ देव ! अमच्चस्स चेव नन्नस्स । संपत्ता जेण पिया नवजोव्वणकेरलीरमणी ॥ ३९९० ॥ जारिसयं से रूवं न तारिसं नूणमवरनारीण । किं जंपेमि असच्चवियदंसणामरपुरंधीसु ॥ ३९९१ ॥ तीए सहाणेयविणोयवग्गयासंगओ गमइ दियहे । अन्नाए च्चिय अहवा वेयल्लसमज्जमित्थीओ ॥ ३९९२ ॥ ठाणम्मि जम्मि जम्मिं मंती परियडइ वाहणारूढो । अद्धासणं न मुंचइ केरलिया तत्थ तत्थेव ॥ ३९९३ ॥ अन्नोन्नविउत्ताइं दिट्ठाई ताई जन्न केणावि । तेणं चिय तन्नेहो सारसमिहुणस्स व पसिद्धो ॥ ३९९४ ॥ किं बहुणा पहु ! मंती झंखइ सुत्तो वि केरलि त्ति पयं । नट्ठमणो पुरिसंतरमवि न नामेण वाहरइ ॥ ३९९५ ॥
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