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रयणावलिकहा वल्लहपियगमणदिणा संनिहिया अंगरक्खयनर व्व । न मुयंति तं खणं पि हु कलमलयुम्मायरणरणया ॥ ३९७० ॥ इय तं दुत्थावत्थं नाऊण निवेण पेसिउं विज्जे । काराविया विगिच्छा तह जह सा नीरुया जाया ॥ ३९७१ ॥ कडयट्ठिओ वि मंती पेसिउं गुरुवेगकरहपुरिसेहिं । कारवइ सया सारं अप्पिय नियकरलिहियलेहे ॥ ३९७२ ॥ तं नाउं निरुयंगि निवो वि कइया वि पुच्छिउं वत्तं । तीए सयासे पत्तो सहस त्ति सुहासणासीणो || ३९७३ ॥ , नाऊण निवागमणं कारविया तीए असमपडिवत्ती । अवरो वि घरे पत्तो पुज्जो किं पुण न नरनाहो ॥ ३९७४ ।। सवणंतपत्तनयणिं पुन्निमरयणियरबिंबसमवयणिं । उत्तंगपीणसिहिणिं कलहंसकरेणुगइगमणिं ॥ ३९७५ ॥ संपत्तरूवरेहं मिउदेहं परिलसंतगुणगेहं । तं दटुं नरनाहो सकामचित्तो वि चिंतेइ ॥ ३९७६ ॥ सा कावि रूवरिद्धी इमाए निस्सेसभुवणअब्महिया । मझे त्ति हरइ गव्वं हरिहरसुरवइसहयरीण ॥ ३९७७ ॥ मन्नामि पुन्नपत्तं मंतिं च्चिय जस्स पणइणी एसा । दळूण जीए रूवं रई वि अरई समुव्वहइ ॥ ३९७८ ॥ सव्वाण वि मह अंतेउरीण पासम्मि होइ जइ एसा । ता दासीओ व ताओ नजंति इमाए तणयाओ ॥ ३९७९ ॥ इय चिंतंतो अवियहलोयणो तं पलोइरो दूरं । सूरो वि कायरत्तं संपत्तो झत्ति अवणिवई ॥ ३९८० ॥ सा रई मह पिया ता किमिमं नेहनिब्भरो नियइ । इय भंतीए हओ सो सरेहिं राया अणंगेण ॥ ३९८१ ॥ अविइन्हपेच्छिरं तं दळु नयसुंदरी नयनिहाणं । पूयापुव्वं जंपइ पहु ! अपसाओ इमो मज्झ ॥ ३९८२ ॥
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