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________________ ६१६ इय तव्वयणस्सवणा नियदेहाओ वि नियधणाओ वि । अब्भहियं तं मन्नइ दइयं सो जीवियाओ वि ।। ७९०९ ॥ सिरिअणंतजिणचरियं सुरलोयसंभवासमविसयरसासंगसत्तविचित्तस्स । अन्नाओ च्चिय गच्छइ कालो से चत्तधम्मस्स ॥ ७९१० ॥ समयंतरम्मि महइं वेलं ठाउं सुरिंदपासम्म । जा गच्छइ ता पेच्छइ न भारियं नियविमाणम्मि ॥ ७९११ ॥ कत्थ गया मे कंता ? कंतिमई इय विभाविउं जाव । तव्विरहविहरिओ तं नाणेण पलोइउं लग्गो ।। ७९१२ ॥ तो अंबरसिहरगिरिंदसंदवणदक्खमंडवतलम्मि | विसयासत्तं अवरामरेण सद्धिं तमिक्खेइ ।। ७९१३ ।। गुरुरोसावेगारत्तनेत्तपहभरपिसंगियग्गनहो । तद्दुगदहणनिमित्तं निसट्ठगुरुतेउलेसो व्व ॥ ७९१४ ॥ तो ताण मारणत्थं काउं वेगं गओ गिरिसिरे सो । नट्ठाई दुयं दोन्नि वि को ठाइ पुरो दुजयरिउणो ॥ ७९१५ ।। नट्ठे दुगे वि वेरग्गवासणावासिओ विचिंतेइ । पेच्छ अहं वेलविओ विवेयकलिओ वि पावाए ॥ ७९१६ ॥ तुह विरहविहुरियाहं ठाउं चिट्ठामि नो निमेसं पि । ताण भणियाण जायं अवसाणं एरिसमिमीए ।। ७९१७ ।। धिद्धी धिरत्थु इत्थीण ताण जाहिं विमोहिया संता । मइरामत्त व्व विवेइणो वि मूढत्तणं जंति ॥ ७९९८ ॥ जिणचवण - जम्म - दिक्खा - केवल - निव्वाण - पव्व - पूणओ I सुकयं समज्जियं नो मए पियामोहमूढेण ॥ ७९१९ ॥ जाण कए पाणा वि हु तणगणणाए सया गणिज्जंति । तासि इमं सरूवं ता धिद्धी थीसिणेहस्स ॥ ७९२० ॥ घेप्पंति रूव - जोव्वण - विज्जा - विन्नाण-नाण-दविणेहिं । नो पावप्पयईओ ता धिद्धी थीसिणेहस्स ।। ७९२१ ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001445
Book TitleAnanthnath Jina Chariyam
Original Sutra AuthorNemichandrasuri
AuthorJitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1998
Total Pages778
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, N000, & N001
File Size10 MB
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