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जेसिं संमुहो धावइ ते उच्छलिउं चडंति रुक्खेसु । पवियारिज्जइ पच्छा धाविय अवरावरकईहिं ।। ६२१ ।। तो कइकुलखरनहरप्पहरपवियारिओ हरी जाओ । सव्वंगं पि हु परिगलिररूहिरधारारुणो दूरं ॥ ६२२ ॥ नट्ठो एक्कदिसाए पिट्ठीए तयणुकइकुलं चलियं । मंदानिलअंदोलियसुपक्कगुरुकुलसुखेत्तं व ॥ ६२३ ॥ निब्भयधाविरवानरविंदकयच्छिज्जमाणसव्वंगो । वेगेण पविसिय दूरगिरिगुहाकंदरे लुक्को | ६२४ || चलियाई कइकुलाई विजिओ वेरित्ति वियसियमुहाई । अहवा न कस्स तोसाय होइ अहिमाणसंसिद्धी ।। ६२५ ॥ सट्ठाणमुवगए कइकुलम्मि पढमो कई भज्जो वि । पत्तो मुणिपयपासे तं पणमइ रम्मरोमंचो ॥ ६२६ ॥ आणंदसंदिरच्छो सपिओ वि हु नियइ मुणिमुहाभिमुहं । वारं वारं पणमइ तं महिमंडलमिलियभालो ॥ ६२७ ॥ एत्थंतरम्मि तग्गिरिसमहिट्ठायगसुरो सपरिवारो । पणमिय मुणिमुवविट्ठो पसंसिउं वानरं लग्गो || ६२८ ॥ भो वानरनरिंद ! तिरिओ वि तं पसंसिज्जसे सुरेहिं पि । जस्स तुह पक्खवाओ एवं रूवो गुणिमुणिम्मि ।। ६२९ || इय तं पसंसिऊणं काराविय पेच्छणाई विविहाई । झाणट्ठियमुणिपुरओ तिरोहिओ पणयसाहू सो ॥ ६३० ॥ वानरजुयं तहा चेव संठियं साहुरयणगयनयणं । तं दठ्ठे पारेउं झाणं साहू समुवविट्ठो ॥ ६३१ ॥ नाउं मुणिणो सद्धम्मजोग्गयं देसणा कया तस्स । तीए एयारियाई सुदेव - गुरु- धम्मतत्ताई ॥ ६३२ ॥ सम्मत्तजुओ थूलप्पाणिवहाईण विरमणाईओ । कहिओ गिहित्थधम्मो तस्सातिहिसंविभागंतो || ६३३ ॥
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