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सिरिअणंतजिणचरियं
भणिओ य भद्द ! तुह सव्वविरइवयजोग्गया जओ नत्थि । ता एयं गिहिधम्मं गिण्हसु कमदिन्नसिवसोक्खं ॥ ६३४ ॥ तो तेण सव्वकल्लाणपत्तमत्ताणयं मुणंतेण । गहियसावयधम्मो सपिएण वि वानरिंदेण ॥ ६३५ ॥ वानरराय ! समच्चिय दूमम्मि धम्मे थिरेण होयव्वं । तुमए जमिमो तुह मोक्खसोक्खमक्खेवउ दाही ॥ ६३६ ॥ इय तस्स थिरीकरणं काउं सुस्सावय(नियम)धम्मम्मि । मासक्खमणे पुन्ने नहेण साहू समुप्पईओ || ६३७ ॥ साहुविहारे जाओ उव्वेओ वानरस्स सपियस्स । दूरे गुरुप्पवासो देइ तुहं परिचियस्सावि ॥ ६३८ ॥ होऊण दढमणंतं सुक्खमणंतं समीहिडं मिहुणं । साहामयाणमणिसंलग्गं सद्धम्म(सु)कम्मम्मि ॥ ६३९ ॥ हिययावहारियजिणे वंदइ सुमरई य सुगुरुचरणेण । वाउयजीवपएसे परिपत्तइ पंचपरमेट्ठि ॥ ६४० ॥ अप्पं च थूलजीवे रक्खइ जंपइ न बायरमलीअं । थूलमदत्तं वज्जइ परमहिलं वानरे मुयइ ॥ ६४१ ॥ परपुरिसं वानरिया मेहुन्नं थूलमिय दुगस्स विसे । थूलपरिग्गहविरई तं खंडइ नेव कईया वि ॥ ६४२ ॥ परिहरइ न दिसिसंखं लंघइ माणं न भोग-परिभोगे । न कुणइ अणत्थदंडं गिण्हइ सामाईयं बहुओ ॥ ६४३ ॥ देसावगासियं कुणइ पव्वदिवसेसु होइ पोसहियं । पोसहपारणयम्मि सुमरइ अतिहीण दाणत्थं ॥ ६४४ ॥ चिंतइ य चउप्पासं गिरिणो जलही न लंघिउं सक्को । एत्थ पुण नत्थि देवो न गुरु साहम्मिओ वि हु नो ॥ ६४५ ॥ सुकओदएण केणइ गुरुणा सह मह समागओ जाओ । तस्स सयासे धम्मो पत्तो सिवसोक्खसंजाओ || ६४६ ॥
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