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________________ ६२६ नयणाणिमिसत्तप्पमुहलिंगविन्नाय अमरसब्भावं । रईयकरकमलकोसो तं नमिय पयंपइ कुमरो ॥ ८०३८ ॥ को पहु ! तुमं किमेवं भीसणरूवो ठिओ कहसु मज्झ । इय तेणुत्तो अमरो कुमरं पइ भणइ सुणसुति ॥ ८०३९ ॥ अस्थि असमत्थसुहडं समत्थसुहडोहपत्तविजयं पि । जयसारं नाम पुरं विजयावहरायलंकरियं ॥ ८०४० ॥ तत्थत्थि वित्तसियकरवियरणसंजणियजणमणपमोओ । सम्मयसहिओ चंदो व्व चंदतेओ त्ति अत्थवई ॥ ८०४१ ॥ चंदप्पहाभिहाणा मणोहरा तस्स पिययमा अस्थि । चंदप्पहमारा इव सरूवकयजणमणुम्माया ।। ८०४२ ॥ बहुधणवई वि दव्वज्जणाय सो कुणइ भूरिववहारे । कयकिच्चेहिं वि महिओ जलहीरयणत्थि अमरेहिं काउं कयाणयाइं कयाइं पउणाई पवहणे चडिओ | चलिओ य मलयसिंघल - कडाहकेसाइदीवेसु ॥ ८०४४ ॥ गच्छइ पोओ दूरा नीरभरं मत्थए तरंगे य । फाडतो तासंतो भंजतो भूरिवेगेण ॥ ८०४५ ॥ अणुकूलवायविहिमणवियंभणप्पेरियं च जलजाणं । थेवेहिं वि दिवसेहिं वंछियदीवेसु संपत्तं ॥ ८०४६ ॥ तत्थ मणवंछियब्भहियजायबहुलाहपत्तपरिओसो । गहिओ सदेसजोग्गे कयाणए तयणु पाहुडिओ ॥ ८०४७ ॥ ८०४३ ॥ सिरिअणंतजिणचरि पवणप्पसराऊरिज्जमाणसियवडपयंडवेएण | थोवदिहिं वि पत्तो पोओ जलरासिमज्झम्मि || ८०४८ ॥ एत्यंतरे अकालियघणपडलेहिं समग्गनहमग्गो । जीवो व्व अकज्जब्भवपावेहिं कलुसिओ दूरं ॥ ८०४९ ॥ नहदपणे समुद्दो संकंतो अह घणो जलहिसलिले । जयंति विब्भमं दो वि सामला पेच्छिरनराण ।। ८०५० ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001445
Book TitleAnanthnath Jina Chariyam
Original Sutra AuthorNemichandrasuri
AuthorJitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1998
Total Pages778
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, N000, & N001
File Size10 MB
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