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अणंतजम्मवण्णणं
१५९ इय चिंतंतो अंतो, उल्लसिउद्दामभत्तिपब्भारो । आणंदवसपसत्तं सविसरदंतुरियदिदिलो ॥ २००९ ॥ अइमहुरसक्करालित्तानिमिसा परमन्नथालमुक्खिविउं । पत्तो पहुणो पासे बहुमाणा नमिरसिरकमलो ॥ २०१० ॥ जंपइ पहु ! मह परमप्पसायभरनिब्भरं मणं काउं । गिण्हह इममाहारं अवसरपत्ता जओ तुब्भे ॥ २०११ ॥ अज्जं चिय मह जायं, सहलं अनूणनयणनिम्माणं । जेण भुवणेक्कपुज्जो, भोयणसमए तुमं दिट्ठो ॥ २०१२ ॥ तं दह्णं पहुणा दव्वाइविसुद्धिमिक्खिउं चउहा । तग्गहणकारणम्मि पसारिओ दाहिणो पाणी ॥ २०१३ ॥ तो तेण परमपहरिसवसेण नियजम्मजीवियव्वाण । सहलत्तं कलयंतेण पायसं तत्थ पक्खित्तं ॥ २०१४ ॥ करनिहियाहारसिहा जइ लग्गइ सहसकरविमाणे वि । तह वि न महीए निवडइ, महापभावा जिणा जइ वा || २०१५ ॥ तत्थेव तयं भुत्तं पहुणा केणइ अदिस्समाणेण । जमदिस्सा तित्थयराण हुंति आहारनीहारा ॥ २०१६ ॥ पाराविऊण तिहुयणपुज्जं, विजओ महीमिलियमउली । पणमइ पणयपुरस्सरमुल्लसियासमजसप्पसरो ॥ २०१७ ॥ पहुपारणयं दटुं, उच्छलियामंद-पहरिसपरेहिं । पहयाओ दुंदुहीओ, गयणुच्छंगम्मि अमरेहिं ॥ २०१८ ॥ कप्पूर-मयमयाहियसुयंधगंधोदएण सिंचेउं । भवणंगणम्मि खित्ता दसद्धवन्ना कुसुमवुट्ठी || २०१९ ॥ घुटुं च सुरेहिं नहे “अहो सुदाणं अहो सुदाणं” ति । खित्ता य अद्धतेरसकंचणकोडीओ विजयगिहे ॥ २०२० ॥ विहिओ चेलुक्खेवो, तं दठुमुवागओ सयललोगो । अच्छरियहरियहियओ, विजयं इय सलहिउं लग्गो । २०२१ ॥
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