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________________ १५८ सिरिअणंतजिणचरियं (चउत्थ-पत्थाओ) तयणु भुवणेक्कनाहो, काउसग्गे ठिओ निसमसेसं । मण-वयण-काय-करणव्वावार-निरोह-सुद्धप्पा || १९९६ ॥ अब्भुग्गए दिणयरे, कहिऊणाऽऽरामियाण सविहारं । निक्खंतो नवदिक्खियरायरिसिसहस्सपरियरिओ ॥ १९९७ ॥ गयवर-वसह-रायहंसत्थिरगइकयचारूचरणसंचारो । नियदंसणेण दिंतो, आणंदं पहियविंदाणं ॥ १९९८ ॥ संपत्तो सिसिराए, सराइतल-वीसमंतपहियजणे । सिरिवद्धमाणनामगनयरे नयनिट्ठजणवासे ॥ १९९९ ॥ छव्विहजीवाणाबाहठाणुस्सारिय नयरउज्जाणे । काउसग्गम्मि ठीओ, भुवणगुरू धिज्जजियमेरू || २००० ॥ भिक्खागहणावसरे, जाए छट्ठस्स पारणयकज्जे । पारियकाउस्सग्गो पहू पविट्ठो पुरस्संतो || २००१ ॥ अतुरियअचवलं विक्खेववज्जियं गयगई पहू पत्तो । नयरप्पहाणविजयाभिहाणधणिणो घरंगणए || २००२ ॥ सच्छप्पयई सोमो, उदारचित्तो थिरो गहीरमणो । विजओ वि जओ व्व सया, वि कुणइ लोयाणमाणंदं ॥ २००३ ॥ सो उवविट्ठो भोयणनिमित्तमतिहिं पलोयए जाव । ता नियइ तिजयकल्लाणकुलहरं तिहुयणाहिवइं ॥ २००४ ॥ तो से तोसेण मुहेण पहसियं माणसेणमुल्लसियं । नयणेहिं वियसियं पुलईयं व सव्वंगचंगेहिं ॥ २००५ ॥ चिंतइ न मंदपुन्नाणमेयसमयम्मि एरिसो अतिही । एइ सुकल्लाणलया वियाणउल्लासछणसमओ ॥ २००६ ॥ कइया वि एइ पत्तं, नो वित्तं तं कयाइ नो पत्तं । ताई कया वि न चित्तं, इण्हि तु तिगं पि मिलियं मे ॥ २००७ ॥ अहमेव पुन्नपत्तं जंगमकप्पडुमो इमो जस्स । भवणंगणम्मि पत्तो देवरिसी मह महारूवो || २००८ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001445
Book TitleAnanthnath Jina Chariyam
Original Sutra AuthorNemichandrasuri
AuthorJitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1998
Total Pages778
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, N000, & N001
File Size10 MB
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