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सिरिअणंतजिणचरियं तं पुहु ! अपडुसरीरो तह जाओ जर न केणई नाओ । . दोसो एएण पुणो नाऊण झड त्ति निग्गहिओ ॥ ५४८७ ॥ जा सामि ! तुह अवस्था हुंती सा होउ मारिऊ पि । एसो पुण उवयारी, जेण सरज्जो तमुद्धरिओ ॥ ५४८८ ॥ तो रन्ना दिन्नं से तोसा घणरयणरम्ममाभरणं ।। वत्थाई विविहाई, सिरी य सछत्ता य तुरगा य ॥ ५४८९ ॥ तो अंदेउरमंडलियमंति-सामंत दो विदल्लेहिं । समहायजेहिं वत्थाहरणाई तस्स दिन्नाइं ॥ ५४९० ॥ सम्माणिय सत्थवई मुक्कं सुकं च समत्थसत्थस्स । दिन्नो उ य पासाओ वसंतदेवस्स भूवईणा ॥ ५४९१ ॥ सियछत्त लंकरिओ, वसंतदेवो तुरंगमारुहिउं । रायसहाए गंतुं नमइ सया वि हु महीनाहं ॥ ५४९२ ॥ कारविओ ववहारे वणिउत्तेहिं धणं समज्जेइ । ईय तस्स कत्तिया वि हु मासा सोक्खेण अइक्कंता ॥ ५४९३ ॥ अह अन्नया य सामलचउद्दसीदिणनिसीहसमयम्मि । काउं सरीरचिंतं जायसोयाओ उत्तिन्नो ॥ ५४९४ ॥ तो उट्टिमाणदेहाओ पिंगदिट्ठीओ बुब्बुयंतीओ । लंबिरगुरुकन्नाओ अयाओ पासइ चउपासं ॥ ५४९५ ॥ अच्चंतकालकायाओ महिसिमाणाओ किलिकिलिंतीओ । झंपाहिं भमंतीओ नहे निरिक्खइ बिडालीओ ॥ ५४९६ ॥ अवलोयइ इंतीओ, पासायस्सावि उच्चतरयाओ । करहीओ कन्नपुडकयकडुरडिया खरउद्धाओ ॥ ५४९७ ॥ करिणिसमुस्सेहाओ, धूसरदेहाओ उच्चकन्नाओ । सममारसमाणाओ खरंखरीओ नहे नियइ ॥ ५४९८ ॥ मुक्कलबालाओ पमुक्कपोक्कफेक्कारभेसियजणाओ । पेच्छइ आगच्छंतीओ, साइणीओ अतुच्छाओ ॥ ५४९९ ॥
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