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तवोवरिचंदकंतकहाणयं एवं पयंपणाईणि, भूरिलिंगाणि साइणे दोसे । जइ देह ताणमभयं, करेमि ता नीरु निवई ॥ ५४७४ ॥ भणियं मंतिपमुहेहिं, नरवई कुणसु रे. वरहियंगं । किं भणसि अभयमेत्तं तुहुत्तमवरं पि काहामो || ५४७५ ॥ तो मंडलए लिहिए उ ठिउ राया अणिच्छमाणो वि । जंपतो फेडह लोहसंकलं मज्झ कंठाओ ॥ ५४७६ ॥ पाहणसिलोवरि सेडियाए मंतक्खराइं लिहिऊण । पहरेउं पारद्धो, वामो बाणप्पहारेहिं ॥ ५४७७ ॥ जह जह जंवं ताडइ, वसंतदेवो तहा तहा राया । मा मारह मा मारह, नियदासीओ त्ति जंपेइ ॥ ५४७८ ॥ ता साइणीहिं काहिं विमुक्को हरिहीरबंभवायाओ । दाउं मुयंति तन्नाओ तयणु जंतं नरं रईयं ॥ ५४७९ ॥ बंधेऊणं मुसलुक्खलढुगं वालरईयरासीए । तह ताडिउं पवत्तो, जह दीणं ताओ जंपंति ॥ ५४८० ॥ भो भो महायसनिवं, सलक्खणं विभइऊण भुत्तंगं । मोयाविंतो अम्ह भविस्ससिद्धिविग्घो त्ति होसि रिऊ ॥ ५४८१ ॥ तेणुत्तं भुत्तं पि हु जइ नो उग्गिरह मरह ता नूणं । ईय जंपिय सो लवणं मंतेण खिवइ जलणम्मि ॥ ५४८२ ॥ मुंचंति तओ काओ, वि दज्झिरदेहाओ दिन्नवायाओ । पोढाओ बिंति अज्ज वि, ज९ ता जालह जलणं ॥ ५४८३ ॥ तो रयणमई रइया पुत्तलिया तीए मंतमुच्चरिउं । छित्ता करंगुली भयणुसाइणीए वि पडिया सा || ५४८४ ॥ तो नासाइविकत्तणभएण सव्वेण साइणिजेणेण । दाऊणं वायाओ मुक्को, राया ठिओ निरुओ ॥ ५४८५ ॥ दळूण मंतजंतोवक्कममवणीवई भणइ मंतिं । . किं मंति ! इमं ति तओ सो नमिय निवस्स विन्नवइ ॥ ५४८६ ॥
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