SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 455
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४२६ सिरिअणंतजिणचरियं ५४६१ ॥ मोणट्ठिए महल्लयवग्गे रुइरे य दासदासगणे । कुलवुड्ढा विसरम्मि य दूरे परिदेवयंतम्मि ं ॥ दीणम्मि दूयनियरे, साममुहे मित्तमंडले सयले ! पुच्छिज्जंते आयरपुरस्सरं जाणयजणम्मि ॥ ५४६२ ॥ ते दोन्नि वि पडिहारेण, दंसिया मंतिणो तओ तेहिं । पणओ सो उवविट्ठा, य ते तयाणाए तप्पुरओ || ५४६३ || भणियममच्चेणमहो, जं जाणह तं करेह निवविसए । जीवाविऊण निवइ, तुब्भे जीवावह जयं पि ।। ५४६४ || जंपर वसंतदेवो पहू सपुन्नेण होहिही निरुओ । ता सुरहिकुसुममालं एक्कं मह मह इण्हिमप्पेहा ॥ ५४६५ ॥ तो तस्स अप्पिया सा, तेण वि अभिमंतिउं तमिय भणियं । जह न वियाणइ राया, तह तक्कंठे इमं खिवह ॥ ५४६६ ॥ काराविय तब्भणियं, वसंतदेवस्स मंतिणा कहियं । पत्तो वसंतदेवो ससत्थनाहो निवसयासे ।। ५४६७ ॥ तत्थोवविसिय सिक्खाबंधो विहिओ वसंतदेवण । रईऊण अप्परक्खं, पररक्खं कुणइ मंतत्तं ॥ ५४६८ ॥ वाहरिय मंति - सामंत - मंडलिए निवेसिय समीवे । जंप निवस्स दोसो, लक्खिज्जइ साइणीजणिओ || ५४६९ ॥ तल्लिंगाई इमाई दिठि, नरवइपरस्स दिट्ठीए । पहसइ रोयइ गायइ, पेच्छइ नहं अकयलक्खं ।। ५४७० ॥ आउरयं आवज्जइ, पइक्खणं तह जहा दसा अंतं । जंपइ य असंबद्धं, केसे य समारए विरहं ॥ ५४७९ ।। वारं वारं सीओ देहो, उन्हो य होइ अनिमित्तं । चउपासठियाहिं अहं निज्जामि इमाहिं उक्खिविरं ।। ५४७२ ॥ तोडिज्जंति य अंताई, मज्झ फालिज्जए य देहो वि । खज्जामि कत्तियाहिं, उक्कत्तियमंसखंडेहिं ॥ ५४७३ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001445
Book TitleAnanthnath Jina Chariyam
Original Sutra AuthorNemichandrasuri
AuthorJitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1998
Total Pages778
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, N000, & N001
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy