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तवोवरिचंदकंतकहाणयं
भणिरीओ रे कुमंतिय ! आयड्ढतो मुहाओ अम्हाण । तईया नरिंदभक्खं छुट्टिसि कहमिहि जीवंतो ।। ५५०० || कइया वि दुब्बला वि हु बलवंता हुंति तो वयं मिलिउं । सव्वाओ साइणीओ पत्ताओ तुज्झ छलणत्थं ॥ ५५०१ ॥ दट्ठूण अयाओ बिडालियाओ उट्टीओ गद्दहीओ य । डमडमिओड्डामरडमरुयाओ तह साइणीओ वि ॥ ५५०२ ॥ साहिक्खेवं माणुसभासाए पयंपिरीओ दट्ठूण | चिंतइ वसंतदेवो निसीह समए हमेगागी || ५५०३ || तेरिच्छीरूवतिरोहियाण पच्चक्खमाणवीणं च । एत्तियमित्ताणं साइणीण कहमिहिं छुट्टिस्सं ॥ ५५०४ ॥ य परिभावणभयवसउक्कंपियगत्तजायरोमंचं ।
छलिऊण गयाओ सट्ठाणे साइणीओ दुयं ॥ ५५०५ ॥ नो तव्वेलं चिय जायगरुयजद्दज्जरुल्लसिरकंपो । रणभवुब्भंतो इव, संपत्तो वासभवणं सो ॥ ५५०६ ॥ वेलपुरिसपेसण पत्तं उववेसिऊण सत्थवई ।
साहइ साइणीसमुदाय भेसणुप्पन्नछलभावं ॥ ५५०७ ॥ भई य न एत्थ नयरे वि अत्थि नणु के वि मंतजंतन्नु । ता धुवमणुपत्तं मे मरणं को छुट्टइ रिऊणं ॥ ५५०८ ॥ जइ सच्चं तं मित्तो ण मज्झ मयस्स झत्ति सुहकुहरे । अक्खय-उडिल्ल-सिद्धत्थयाणं मुट्ठि खिवेज्जाहि ॥ ५५०९ ॥ कज्जो तहा विलंबो, जह जंपाणं दिणावसाणम्मि । जाइ मसाणे तो हं मुत्तव्वो छाइयचियाए ॥ ५५१० ॥
देउ न चेव अग्गी, ताहं गोसम्मि सव्वमवि भव्वं । काहं मित्तं ! तहा जह भुवणस्स वि होइ अच्छरियं ॥ ५५११ ॥ इय कयसंकेओ सो सद्धिं सत्थाहिवेण रयणीए । वेयल्लसमुल्लासं वच्चइ अणुवेलसवि दूरं ॥ ५५१२ ॥
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