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________________ ६९३ गंधबंधुरकहा कइया वि सा सहियणसहिया सिंगारगारवग्घविया । आरुहिय कणयमणिमयसुहासणं चलिरसियचमरा ॥ ८९०४ ॥ मुत्तावचूलविलसंतछत्तअंतरियतरणिकरपसरा । सहयारसारमुज्जाणमागया कीलिङ बाला ॥ ८९०५ ॥ परिपक्कफुट्टदाडिमबीयावलिनिद्धदंतपंतीहिं ।। हसइ व्व जं नरेसरसुया समागमणतोसेण ॥ ८९०६ ॥ विलसंतकुसुमलईया सियकलिया चक्कवालकलियं जं । कुमरी संगवसुल्लसियपुलयपब्भारभरियं वा ॥ ८९०७ ॥ अंबयवणकयलीहरदक्खमंडवमणोभिरामम्मि । तम्मि पविट्ठा बहुकुसुमपरिमलब्भमिरभमरम्मि ॥ ८९०८ ॥ पेच्छइ अतुच्छअच्छरियकारयं नरमुहं मऊरं सा । विलसिरसुतारचंदयविरायमाणं नहयलं व ॥ ८९०९ ॥ मुत्तावलईयमरगयकुंडलकरछुरियनिम्मलकवोलं । चंदणमयणाहीरे हरई य बहुभंगिपत्तं व ॥ ८९१० ॥ भमरउलकालकुंतलधम्मिल्लुल्लसियसियकुसुममालं । सामचउद्दसिनिसिदिस्सविमलरयणीयरकलं व ॥ ८९११ ॥ दटुं कुमरिं नियचरणचारुसंचाररणिरघग्घरिओ । गंतूण संमुहो भणइ कुमरि तुह सागयं एत्थ ॥ ८९१२ ॥ एहिं इहं च वणंतो कयलीहरए सदक्खमंडवए । उवविसिउं आयन्नसु जं किं पि अहं तुह कहेमि ॥ ८९१३ ॥ तं अवलोइय अच्चब्भुएक्कहेउं सहीओ सा भणइ । कोऊहलमवलोयह जमिमो दीसइ नरमऊरो ॥ ८९१४ ॥ तह वाहरइ सविणयं जं किं पि हु मज्झ कहिउमिच्छंतो । ता तं आयन्नेमो उवविसिउं साहए जमिमो ॥ ८९१५ ॥ जंपति ताउ सामिणि, तुम्हाण च्चिय पमाणमम्हाण । कज्जेसु समग्गेसु वि किं पुण एवंविहच्छरिए ॥ ८९१६ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001445
Book TitleAnanthnath Jina Chariyam
Original Sutra AuthorNemichandrasuri
AuthorJitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1998
Total Pages778
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, N000, & N001
File Size10 MB
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