SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 244
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ रणविक्कमकहा - २१५ दट्ठा दट्ठा अहिण त्ति जंपिरी कंपिरी महीए गया । इयरो त्ति भवइ भोई भयाय किमुभक्खिया जेण ॥ २७३२ ॥ धाहावियम्मि दासीदासाईहिं निवाइणो मिलिया । आयरपरा पराण वि वसणे गुरुणो न किं नियए ॥ २७३३ ॥ . मणिमंतओसहीसुं पउंजियासु वि न से गुणो जाओ। . अच्चंतं थोवो वि हु तो आदत्तो निवाइ जणो ॥ २७३४ ॥ किं कायव्वविमूढे निवाइलोए समुल्लसियसोए । विन्नत्तमागएणं केणावि अवंतिपुरिसेण ॥ २७३५ ॥ देव ! रणविक्कमाभिहराया नियपुन्नपत्तरज्जभरो । लीलाए वि हरइ विसं केवलनाणि व्व न संदेहं ॥ २७३६ ॥ उज्जेणीए पुरीए सेट्ठिस्स धणाहिवस्स कणयसिरी । कन्ना मह पच्चक्खं हरियविसा तेण झत्ति कया ॥ २७३७ ॥ सोऊण तमाह निवो राया सो वसइ दूरदेसम्मि । कंठगयप्पाणापणएसा ता जीविही कत्तो ? || २७३८ ॥ तो वसियरणुच्चाडणविद्देसागरिसणप्पविण्णेण । वसविहियचेडएणं पुरोहिएण विसइहिएणं ॥ २७३९ ॥ भणियं पहु ! इण्हि च्चिय, तस्साणयणम्मि में समाइससु । एवं ति निव्वुत्ते चेडएण आणावइ निवं सो || २७४० ।। सरजलकेलिपसत्तो जलकरिरूवेण चेडएणावि । रणविक्कमो हरेडं, समप्पिओ तस्स निवपुरओ ॥ २७४१ ॥ सम्माणिय कहिओ से रन्ना कन्नाहि वइयरो वि तो सो । भणिओ य कुणसु पउणं मह कन्नफुरियगुरुकरुणा ॥ २७४२ ॥ रणविक्कमेण भणियं, राय ! करिस्सामि सव्वमवि किंतु । जणयाइणो न पाणे धरंति मएऽवहरियम्मि || २७४३ ॥ तं सोउं निवभणिओ, पुरोहिओ चेडएण कडयस्स । रायागमणं दिणदुगमज्झे, जाणावए झत्ति ॥ २७४४ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001445
Book TitleAnanthnath Jina Chariyam
Original Sutra AuthorNemichandrasuri
AuthorJitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1998
Total Pages778
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, N000, & N001
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy