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सिरिअणंतजिणचरियं गंगा-जउणाहिं पिव रमणीहिं गोरसामलंगीहिं । जो वीइज्जइ ससि-सियचमरेहिं चक्कवट्टि व्व ॥ ३४१५ ॥ विज्जाहरे सरंतं दटुं दूओ महीमिलियभालो ।। पणमिय निवसइ दिन्नासणम्मि आबद्धकरकोसो ॥ ३४१६ ॥ नरवइभमुहाओन्नमणनायविन्नत्तिकरणपत्थावो । पुणरवि कयप्पणामो दूओ विन्नविउमारतो ॥ ३४१७ ॥ देवत्थि उत्तरस्सेणिकामिणीजणियसोहसीमंतं । सिरिगयणवल्लहपुरं चूडारयणं व समुवनं ॥ ३४१८ ॥ रयणीसु रयणभवणंगणेसु दठूण पुण्णससिबिंबं ।। जम्मि पुडंरियवणब्भंतीए भमंति अलिहंसा ॥ ३४१९ ॥ तम्मि नियपोढपयावदावसलहीकयारिसंदोहो । अत्थि खयराहिराया विज्जप्पहनामगो बलवं ॥ ३४२० ॥ सिग्घ कइस्स वि रूसइ जो सत्थकरणस्स रणरसव्वसणी । बाणासणधरणपरे रन्नम्मि वि रोसमुव्वहइ ॥ ३४२१ ॥ जस्स वसंताईसु वि रिउसद्दो सुइगओ कुणइ कोवं । रायसिरे चंदम्मि वि मुयम्मि जो वहइ संतावं ॥ ३४२२ ॥ एसो सूरो त्ति रवी वि जस्स विद्देसकारओ होइ । पुहवीधरसदं जो न सहइ कंचणगिरिस्सा वि ॥ ३४२३ ॥ उब्भावियस्स वि विलसिरछत्तस्स न जो कयाइ तूसेइ । चमराहियसोहेणं पायालेण वि वहइ दाहं ॥ ३४२४ ॥ जस्स विही वि हु वेरी उव्वहमाणो पयावईसई । पुरिसोत्तमो त्ति कन्हो वि कुणइ कालुस्सयं जस्स ॥ ३४२५ ॥ गोरीपुत्तो वि महासेणो त्ति सया वि जस्स रोसाय । उग्गो त्ति हरो वि हु होइ कोवउक्करिसकरणाय ॥ ३४२६ ॥ नियबाहुदंडचंडत्ततणतुलातुलियतिजयसुहडस्स । जस्स भयुभंता इव न सेस सक्का वि इंति महिं ॥ ३४२७ ॥
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