________________
४६१
भावणाधम्मेसिंगारमउडकहा पेच्छंतो पेच्छणए ठाणे ठाणे पणंगणा जणिए । कयलवणुत्तारणओ पए पए पुरपुरंधीहिं ॥ ५९०८ ॥ जो पत्तो अज्झावयभवणसमासन्नविवणिवीहीए । ता मयभरावगाढो जाओ सहस त्ति सो हत्थी ॥ ५९०९ ॥ उम्मुक्कफारफुक्कारसिक्करासारसित्तधरणियलो । पारद्धो पसरेउं उक्खित्तकरो करीतुरियं ॥ ५९१० ॥ तं गज्जंतं इंतं दटुं नट्ठो जणो समग्गो वि । अवसे एयप्पयारे नियडेणत्थे थिरो को वा ? ॥ ५९१ ॥ कयखुरदडवडरावे नासतो गिण्हिडं हए हणइ । रसमसकसंतकट्ठे चूरइ सो रहियरहियरहो ॥ ५९१२ ॥ तडयडतुटूंतजडे मोडइ रुक्खे विणासइ नरे वि । पाडइ पासाए तो नयरे असमंजसं जायं ॥ ५९१३ ॥ अह तब्भयभरविहुरो लोओ घरपुरसिरेसु आरूढो । कुव्वंतो नासह नासह त्ति सद्देण हलबोलं ॥ ५९१४ ॥ गंधियहट्टविकुट्टिज्जमाणमइसुरहिओसहीगंधं । घेत्तुं सुमरियविंझो विणिग्गओ गयवरो नयरा ॥ ५९१५ ॥ पवणुप्पाडियमेहो व्व नहयले गुरुरएण जाइ पहे । जह पच्छा धावंता पावंति न तं तुरंगा वि ॥ ५९१६ ॥ झंपाहिं समुत्तिन्ना तो पिट्ठग्गासणासछत्तधरा । नवरं सबालहारो कुमरो च्चिय जाइगयचडिओ ॥ ५९१७ ॥ नाउं मयावगाढेण हत्थिणा अवहियं सुयं राया । अत्थाणमंडवाओ समुट्ठीओ झ त्ति रायजुओ ॥ ५९१८ ॥ गुरुरयतुरयाणीयं जा पउणं काउं समववेगेण । उद्धाविओ रएणं गओ गओ दूरदेसं ता ॥ ५९१९ ॥ गयपयपयवीलग्गा नरिंदमंडलिय-मंति-सामंता । खीणाइवि अक्खीणा इव वहति वेगेण तं दटुं ॥ ५९२० ॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org