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________________ ५१८ सिरिअणंतजिणचरियं दीणमुही पुण चविऊणमेस्थलच्छीविलासनरवइणो । तणया जाया नामेण रयणमाला इमा बाला ॥ ६६४४ ॥ नियपरिवारसमेया भमिरी पुरपरिसरम्मि इह पत्ता । पुव्वभवदिट्ठिमुणिवेसधारिणा इह तयं दिट्ठा ॥ ६६४५ ॥ कत्थइ एरिस वेसो मज्झ मुणी दिठ्ठपुव्वओ मन्ने । ईय ईहाईहिं इमाए जाइसरणं समुप्पन्नं ॥ ६६४६ ॥ तो मुच्छियं इमं पेच्छिऊण मुच्छाए कारणं अम्हे । तुब्भेहि पुच्छिया तं पि साहियं तुम्ह सव्वं पि ॥ ६६४७ ॥ जाणंतीए वि न इमाए तुम्ह जं पुव्वभवदुगं कहियं । तं गुरुपुरओ न कहा कहियव्वा ईय कया नीई ॥ ६६४८ ॥ तं सोउं सा बाला पुव्वभवुब्भवपियम्मि अणुरत्ता । वंदिय गुरुमारुहिउं सुहासणे भवणमणुपत्ता || ६६४९ ॥ सद्धम्मसईयनियपुव्वदईयसरणुब्भवंतसंतावा । सुहलवमवि न वि पावइ सा कत्थइ दाहजरिय व्व ॥ ६६५० ॥ सिसिरविमिस्सियचंदणरससिंचियतालयंटपवणेण । सा दज्झइ परिपज्जलिरभाडनिज्झामएणेव ॥ ६६५१ ॥ विरहानलउक्तत्ते गत्ते चंदणरसच्छडा सारो । सत्थं कारंतीए डझंतो मुयइ सोरब्भं ॥ ६६५२ ॥ तल्लोवेल्लिपराए तणुतावविसुक्ककमलसत्थरओ । मुंचइ गिम्ह व्व खुडियसक्कदमुम्मुरारावे ॥ ६६५३ ॥ पिइवणगिहाण वसिमुव्वसाण वुड्ढिक्खयाण न विसेसं । पियविरहविहुरियहरियमाणसा जायए बाला ।। ६६५४ ॥ न मुणइ छुहं न याणइ तिसं पि निदं पि न लहइ निसाए । मुंचई य केवलं सा मुत्ताहलथूलअंसूणि ॥ ६६५५ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001445
Book TitleAnanthnath Jina Chariyam
Original Sutra AuthorNemichandrasuri
AuthorJitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1998
Total Pages778
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, N000, & N001
File Size10 MB
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