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________________ रयणसुंदर कहा वामकरगयकवोला पियलाहस्सरणवग्गया विगमे । थरहरियथूलथणं मुंचइ सरलुन्हसासेसा ॥ ६६५६ ॥ न सुहं सयणे न रयं घरम्मि दिट्ठी न ठाइ दट्ठव्वे | पियविरहियाए तीए जायमसेसं पि असुहयरं ॥ ६६५७ ॥ एवमवत्थं दट्ठूण निवसुयं तो सहीयणो झति । गंतुं निवस्स साहेइ सुयाए मुच्छाए वृत्तंतं ॥ ६६५८ ॥ दईयलोहसमुब्भववेयल्लुल्लावमवि पयासेइ । ६६६१ ॥ जंपइ य सामि ! कुमरी अपहू नियपाणधरणे वि ॥ ६६५९ || जइ देव ! लहइ सा थोवदिवसमज्झमि पुव्वभवदईयं । जायइ तोन्नयमुहा न अन्नहा कुणह ता जत्तं ॥ ६६६० || आयन्निऊण कुमरी वयंसिया बंदिविहियविन्नत्तिं । रायाह तह जइस्सं दुहिया सुहिया जहा होही ॥ एवं पयंपिऊणं देवीसहिओ गओ सुया पासे । जंपइ वच्छे ! ता धरसु धीरिमं जा वरेमि तयं ॥ ६६६२ ॥ जुत्तं चिय पुत्ति ! इमं जं पुव्वभत्तुब्भवेपि पराओ । अवराणुरायरत्ताओ हुंति न सईउ नाए जं ॥ ६६६३ ॥ एवं परिजंपंतस्स राइणो नहयलेण हं पत्तो । अब्भुट्ठिओ य तेणं विणयपरा पियगुरुसु गरूया || ६६६४ ॥ सीहासणे निवेसिय पणओ हं तेण परियणजुएण । नाऊण मए विमणो त्ति कारणं पुच्छिओ कहइ ॥ ६६६५ ॥ जह जाइस्सरणाणं विन्नाए पुव्वभवपिए रत्ता । बाला खणं पि ठाउं न तरइ सो पुण वरो दूरे ॥ ६६६६ ॥ तव्वरणाय विसिट्ठा जा गंतुं ईति ता धुवमिमीए । विहिदुव्विलासवसओ जायइ अच्चाहियत्तं पि ॥ ६६६७ ॥ किं कायव्व विमूढाणमम्ह रिसिराय ! कहसु जं किच्चं । अच्चतमसुहियाणं हिओवरसेणमिहिं ति ॥ ६६६८ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only ५१९ www.jainelibrary.org
SR No.001445
Book TitleAnanthnath Jina Chariyam
Original Sutra AuthorNemichandrasuri
AuthorJitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1998
Total Pages778
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, N000, & N001
File Size10 MB
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