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________________ ६५३ भुवनपईवनिवकहा ता आराहेयव्वो एस मए देवय व्व सुगुरु व्व । जणओ व्व जावजीवं परोवयारप्पसत्तमणो ॥ ८३८६ ॥ इय चिंतिओ य उट्ठेउं पणमिय तं पायपउमजुयलग्गो । जंपइ मह अवराहं खमसु महायस ! कयपसाओ ॥ ८३८७ ॥ जइ न तुम मुंचंतो संपइ मं पुरिसरयण ! हुंतो हं । ता मंसगिद्धगिद्धाइयाण भक्खं छुहत्ताण ॥ ८३८८ ॥ इण्हि तं चिय सरणं आमरणं तं पि मज्झ बज्झा वि । जमहं न हओ तुमए करुणारसपूरियमणेण ॥ ८३८९ ॥ दहें तं खामंतं जंपइ कुमरो अहो महासत्त ! । तुमए विवेइणा वि हु किमि मम वेरे वि पारद्धं ॥ ८३९० ॥ जो जिणमए थिरमणो सुमरइ मरणम्मि पंच परमेट्छि । तस्सेयारिसनिग्घिणकम्मं जायइ अहो चोज्जं ॥ ८३९१ ॥ जइ मह कहणिज्जमिणं सुपुरिस ! उवविसिय कहसु ता एत्थ । अहव अकहणिज्जं ता अच्छउ हियइच्छियं कुणसु ॥ ८३९२ ॥ सो भणइ जस्स तणया पाणा वि हु तस्स किं न कहणिज्जं ? । इय जंपिय उवविसिउं सो कहइ निविट्ठकुमरस्स ॥ ८३९३ ॥ गुरुनयपत्तच्छाओ घणकसिण सुतारसारसरलक्खो । सुयणो व्व भरहखेत्ते वेयड्ढो नाम अत्थि गिरि || ८३९४ ॥ तम्मि फुरंतमणिगणरहनेउरचक्कवालरमणियणं । रयणमयं अत्थि पुरं रहनेउरचक्कवालं ति ॥ ८३९५ ॥ दरियरिउवारवारणगणकुंभवियारणिक्कखरनहरो । तं परिपालइ सिरिरयणसेहरो नहयराहिवई ॥ ८३९६ ॥ तस्सत्थि सव्वसुद्धंतकंतकंताहिवत्तअहिसित्ता । हारसिरि व्व हारस्सिरी पिया वित्तमुत्तगुणा ॥ ८३९७ ॥ अन्नोन्नरम्मपेम्माणुबंधवद्धतमणपमोयाण । पंचविहविसयसत्ताण ताण कालो अइक्कमइ || ८३९८ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001445
Book TitleAnanthnath Jina Chariyam
Original Sutra AuthorNemichandrasuri
AuthorJitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1998
Total Pages778
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, N000, & N001
File Size10 MB
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