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________________ अणंतजिणजम्मवण्णणं सुयअसमसिविणयत्था अमंदआणंदजायअंसुभरा ।। जंपइ देवी ! देवप्पसायओ होउ एवं ति ॥ १३१९ ॥ बंधइ य सउणगंठिं, रायाणुन्नाए जाइ वासगिहं । उव्वहमाणी गब्भावयारसंभावणाए सुहं ॥ १३२० ॥ काउं पभायकिच्चं, सिंगारं उत्तमं रईय राया । उवविट्ठो रयणसहा, संठियसीहासणे गंतुं ॥ १३२१ ॥ पणओ य सहेलुट्ठिय नरिंदसामंतमंडलीएहिं । तो तेसु समग्गेसु वि नियनियठाणोवविढेसु ॥ १३२२ ॥ अट्ठविहनिमित्तवियार-सत्थ-परमत्थ-जाणया पुरिसा । वाहरिया नरवइणा, पडिहारमुहेण पत्ता य ॥ १३२३ ॥ न्हाया विलित्तदेहा, दहि-दुद्धक्खय-विरायमाणसिरा । निम्मोयमउयनिम्मलदुकूलकयउत्तरासंगा ॥ १३२४ ॥ सिय-कुसुम-फल-कलिय-करयला वरनिमित्तसत्थकरा । दंडिप्पवेसिया कयउवायणा सफलपुप्फेहिं ॥ १३२५ ॥ आसीसदाणपुव्वं पक्खिविउं अक्खए नरिंदसिरे । पुव्वामुहा निविट्ठा निव-दाविय आसणेसुं ते ॥ १३२६ ॥ तंबोलदाण-पुप्फाइ-पूयणं काउमवणिनाहेण । तेसिं गयाइयाइं चउदससिविणाई कहियाइं ॥ १३२७ ॥ तो ते निमित्तसत्थेण निच्छिउं ताण सिविणयाण फलं । विन्नविउं पारद्धा पहि(ट्ठ)हियया नरिंदपुरो || १३२८ ॥ दव्वसुहा सिविणाणं, भन्नइ बावत्तरी य सत्थम्मि । गिज्जति महासिविणा तीस च्चिय तीए मज्झम्मि ॥ १३२९ ॥ तीए वि मज्झे अइसुंदराई, चउदस इमाई सिविणाई । देवप्पियाए सुजसाए, जाइं दिट्ठाई निसिविरमे ॥ १३३० ॥ एक्केक्कं पि इमाणं नियंति जणणीओ पुन्नपुरिसाणं । देवाणं चक्कीण य जिणजणणी पुणो चउदस वि ॥ १३३१ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001445
Book TitleAnanthnath Jina Chariyam
Original Sutra AuthorNemichandrasuri
AuthorJitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1998
Total Pages778
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, N000, & N001
File Size10 MB
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