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सिरिअणंतजिणचरियं तुम्हारिसा वि जइ सामिसाल कुव्वंति एरिसमकज्जं । ता नूण पउत्थ च्चिय खत्तायारस्स वत्ता वि ॥ ७२३९ ॥ जणओ वि देव ! जइया वेरि व्व विणासिही सुए नियए । तइया इयरजणाणं कत्तो किर जीवियासा वि ? ॥ ७२४० ॥ पहु ! जस्सुच्छंगम्मि सिरकमलं निहिय सुप्पइ सुहेण । सो वि हु जइ तं छिंदइ ता कीरउ कम्मि विस्सासो ? || ७२४१ ॥ जे पालया पयाणं विस्ससणीयाय सव्वया जे उं । ते वी सत्थद्दोह कुणंति जइ ता हया नीई ॥ ७२४२ ॥ जे रक्खणेक्क आसा ठाणं सत्ताण सत्तुभीयाण । जइ ते वि ताण वहया ता निस्सरणा धुवं पुहवी ॥ ७२४३ ॥ ता किं गुरुवएसो एसो अह तुह कुलक्कमो देव ।। किं वा वि नीइमग्गो जमिमस्स सओ तए हरिओ ॥ ७२४४ ॥ अनयपराणं अन्नेसि सामि ! तं देसि सव्वया सिक्खं । को वट्टाणम्मि पहू ! तुज्झ अनायं कुणंतस्स ॥ ७२४५ ॥ तुम्हारिसा वि जइ पहु ! जयजणयसमा वि अनीइणो हुंति । ता जलणज्जालोलीजलाओ समहेलमुच्छलिया ॥ ७२४६ ॥ दीणम्मि दयादुत्थे उदारया भीसयम्मि संभीसा ! । जइ तुन्भेहवि चत्ता ता पलओ च्चिय धुवं पत्तो ॥ ७२४७ ॥ ता देव ! जाव हिययं सहस्सहा फुडियसुयविओगम्मि । न विज्जए वराओ ता अप्पसु पुत्तयमिमस्सा ॥ ७२४८ ॥ सोउं अमच्चउच्चरियचारुसिक्खाविराइवयणाई । संजायगुरुविसाओ राया एवं विचिंतेइ ॥ ७२४९ ॥ अहह अहो ! अविवेओ अहह अहो मह विमूढया महई ! । अहह अहो अच्चंतं, अवियारियकारिया मज्झ ॥ ७२५० ॥ जमिमस्स वरायस्स पियावियोगग्गिजलिरदेहस्स । पुत्तयमवि हरिऊणं खयम्मि खारो मए खित्तो ॥ ७२५१ ॥
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