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________________ ६०७ अक्खयकित्तिनिवकहा एयं तु महच्छरियं जमिमा मं साणुरायनयणेहिं । मयणवियारविनडिया नियइ तिरिच्छी वि तरुणि व्व ॥ ७७९३ ॥ तह वानराण जाई सया चला होइ विज्जुलईय व्व । एसा उ थिरप्पयई दूरं लक्खिज्जइ महि व्व ॥ ७७९४ ॥ ता निच्छयमेयाए वानरित्तम्मि कारणं किं पि ।। इय चिंतिय निवपुत्तो सप्पणयं तं पयंपेइ ॥ ७७९५ ॥ मह पाणे दाऊणं उवयारपरंपरा कया तुमए । ता तुह साहामइ कं करेमि मह कहसु उवयारं ? ॥ ७७९६ ॥ रायसुओ वि हु उवयारकरणप्पवणो वि तुह तिरिच्छीए । किमहं काहं दिन्ना ता नियपाणा वि तुज्झ मए || ७७९७ ॥ तो कामवियारेहिं विनडिज्जंतीए तीए कुमरपुरो ।। गहिऊण गवलखंडं लिहिया गाहा महीए इमा ।। ७७९८ ॥ मह दाहिणं वियारिय उरूं कड्ढित्तु मूलियं नाह ! । नामेण कित्तिमालं मं निवकन्नं विवाहेसु ॥ ७७९९ ॥ तं वाइऊण उरू वियारिया निवसुएण छुरियाए । कड्ढिय मूलिं बद्धा वणम्मि संरोहिणी मूली ॥ ७८०० ॥ तो सा जाया रयणीयराणणा तह हरिणसमनयणी । कंचणगोरी घणपीवरत्थणी नववया रमणी ॥ ७८०१ ॥ दळूण तमच्छरियं उच्छलिय अतुच्छकोउओ कुमरो । भणइ मयच्छि ! असद्धेयमत्तणो कहसु वुत्तंतं ॥ ७८०२ ॥ सा आह नाह ! निसुणसु अत्थि जहत्थे पुरे धरासारे । सिरिरयणसुंदरनिवो तस्स अपुत्तस्स पुत्ती हं ॥ ७८०३ ॥ नामेण कित्तिमाला कोलंती सह सहीहिं भवणग्गे । खयराहमेण हरिऊणमेत्थ एक्केण आणीया ॥ ७८०४ ॥ भणिया य मह महातेयखयरचक्किस्स भारिया भवसु । अविरुद्धमिणं जं कन्नया तुमं हमवि तुह रत्तो || ७८०५ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001445
Book TitleAnanthnath Jina Chariyam
Original Sutra AuthorNemichandrasuri
AuthorJitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1998
Total Pages778
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, N000, & N001
File Size10 MB
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