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इय भोगत्थं अब्भत्थिया बहुं साम-दाण- दंडेहिं । जीवियनिरवेक्खा एव मन्निओ सो मए दूरं ॥ ७८०६ ॥ तो तेण वियारिय ऊरुयाए खिविऊण मूलियं विहिया । वानरिया हं संरोहिणीए वणमविय रोहवियं || ७८०७ ॥ गंतूण नियट्ठाणे समेइ निच्चं पि पत्थिउं भणइ । जइ मं मन्नसि दईयं ता साहसु गवलवन्नेहिं ॥ ७८०८ ॥ इय कुव्वंतस्स गयं दिण - नवगं सामिसालखयरस्स । अज्जं तु सुकयकम्मेणमागया मज्झमिह तुब्भे ॥ ७८०९ ॥ उप्पाईय पेम्मं पि हु दाही मह तुम्ह दंसणं दुक्खं । जं सो खेयरराया मायावी दुज्जओ एही ॥ ७८१० ॥ दठ्ठे मह महिलत्तं मा काही किं पी तुम्ह सोऽणत्थं । ता पविसह तरुगुम्मे आगंतुं जाव सो जाइ ॥ ७८११ || आह नरनाहपुत्तोऽवहारिहो ईयरदव्व चोरो वि । माणुसचोरस्स पुणो लुणामि सीसं सहत्थेण ॥ ७८१२ ॥ किं होइ वराएणं तेण न बीहेमि हं जमस्सा वि । ईय जंपते कुमरे पत्तो सहस त्ति खयरो वि ॥ ७८१३ ॥ पिच्छेउं नियरूवं कुमरिं कुमरं पि तीए नियडठियं । कोवकयभीमभिउडी अवयरइ पयंपिरो एवं ॥ ७८१४ ॥ रे दुट्ठ ! को तुमं मह पियाए पासे समागओ कहसु ? । कुमरेणुत्तं रे रमणिचोर ! कह तुह पिया एसा ? || ७८१५ ॥ तेत्तं एसा जह महप्पिया तह कहेमि खग्गेण । इय भणिरो करवालं कड्ढेउं धाविओ कुमरो || ७८१६ ॥
हुंकारंतो कुमरो वि उट्ठिओ उक्खिवित्तु - दोन्नि वि दट्ठोट्ठा भिउडिउब्भडा जाव जुज्झति ॥ ७८१७ ॥ ता अणुचरामरेणं कहिओ कुमरावहारवृत्तं । रिउदंसणनियनासणपज्जंतो चंदतेयस्स ॥ ७८१८ ॥
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सिरिअणंतजिणचरियं
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